Wednesday, 27 June 2012

दोहा

दोहा, मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में १३-१३ मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में ११-११ मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के आदि में जगण ( । ऽ । ) नहीं होना चाहिए। सम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है अर्थात अन्त में लघु होता है।



मन की ठास कसके नित,न कुछ मोहे सुझाय|
सावन की आस बीती,बारिश है भरमाय||

स्वाति वल्लभा राज

3 comments:

  1. दोहा लेखन के ज्ञान को साझा करती पोस्ट ..

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  2. बहुत उपयोगी जानकारी...

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  3. उपयोगी और जानकारी भरी

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