अनीह ईषना
Thursday, 12 July 2012
पराजिता
भींगी पलकें,
सूखते लब,
गुम हुए शब्द,
धराशायी स्वप्न,
स्तब्ध सोच,
किंकर्तव्य विमूढ़ एहसास;
आज बिल्कुल
मृत हैं|
क्या अब भी कहोगे
तुम कर सकती हो?
स्वाति वल्लभा राज
2 comments:
संगीता स्वरुप ( गीत )
12 July 2012 at 11:49
हाँ ,क्योंकि तुम अपराजिता हो
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अनामिका की सदायें ......
14 July 2012 at 19:53
man haar gaya ho kya kiya ja sakta hai.....kuchh b nahi.
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हाँ ,क्योंकि तुम अपराजिता हो
ReplyDeleteman haar gaya ho kya kiya ja sakta hai.....kuchh b nahi.
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