Friday, 13 July 2012

हाइकु


 

कज्जल ऑंखें
अलासायें सपनें
उन्मुक्त मन|


सजल आँखे
मुरझायें सपनें
बेबस मन|


हरी चूडियाँ
औ कागज़ के नाव
संतुष्ट मन|


सूखा सावन
नीरस है जीवन
ठूँठ सा मन|

स्वाति वल्लभा राज

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर हायेकु स्वाति...

    अनु

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  2. बहूत बढीया हाइकु
    बहूत सुंदर:-)

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  3. कम शब्द अलग अलग स्थिति को दर्शाते.....बहुत सुन्दर।

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  4. बेहद सुन्दर..... कम शब्द किन्तु गहन भाव...
    सादर !!

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