तुम भी न समझे तो क्या होगा
तुम फिर न समझे तो क्या होगा?
सिसकती हुई तो बीती थी हीं जिंदगी
इस बात पर कलपे तो क्या होगा?
दर्द आज भी हर हद से पार है
फिर भी जिंदगी का एहसास है|
ये दर्द तुमको पाकर भी जुदाई का,
इस बात से रूठे तो क्या होगा ?
मेरे हमदम तुम हीं तो हो
हर शब हर शाम में लिपटे|
तन्हाइयों की मेरी इस साथिन
आगोश से छूटे तो क्या होगा?
कम कर होती आब-ए-तल्ख़ है
इसके पीछे तू, हमदर्द है|
ये ढका जो तेरे दर्द से तो
पीड़ा ढक कर हीं क्या होगा?
आब-ए-तल्ख़-आँसू
स्वाति वल्लभा राज
thanks...:)
ReplyDeletebahut sundar rachna ..........hamdard ke dard ka sundar bhav
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeletekhubsurat
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..
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