दुःख मिश्रित विस्मित नयन तेरे,
मुझको क्यों हरसूं रुलाती हैं?
तन्हा पाकर आ जाती क्यों
मुझसे फिर क्यों बतियाती हैं?
मैं भुला तो दूँ अस्तित्व तेरा
उन आँखों को क्यों न भुला पाऊं?
नन्हें पादप से ठूंठ हुई
वो आँखें क्यों अकुलाती हैं?
तू आत्मसात मुझमे नहीं पर
दृष्टि तेरी कहीं जागृत है
सोती रातों में जाग उठूँ
सोती रातों में जाग उठूँ
वो ऑंखें क्यों चिल्लाती हैं?
कर जोड़ करूँ यह प्रार्थना
मुझको अब क्षमा दान दे तू
मेरे वजूद पर नयन तेरे
क्यों प्रश्न चिन्ह उठती है?
सुन्दर भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया स्वाति.
अनु
बहुत सुन्दर रचना , सुन्दर शब्दों का संयोजन
ReplyDeleteसुन्दर हिंदी के साथ सुन्दर भाव ।
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन भाव
ReplyDeleteकल 25/07/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' हमें आप पर गर्व है कैप्टेन लक्ष्मी सहगल ''
बहुत बेहतरीन उत्कृष्ट रचना...
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
सुंदर अभिव्यक्ति
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