तुम्हारी निगाहें हमें जीना सीखा गई,
तुम्हारी बंदिशे हमें लिखना सीखा गई|
तारीफ़ और क्या करे गुस्ताख दिल
तुम्हारी उल्फ़त हमें महकना सीखा गई|
ज़लालत भरी निगाहें तकदीर थी हमारी
बड़ी-बिगड़ी बदसूरत तस्वीर थी हमारी|
उन कांपती हथेलियों को थामा जो तुमने
तुम्हारी छुवन हमें दहकना सीखा गई|
निगाहों के जाम में मद मस्त थी रातें
सजती मगर रोती बिलखती थी वो रातें|
तेरे क़दमों की आहट इनायत थी हम पर
तुम्हारी धडकनें हमें बहकना सीखा गई|
स्वाति वल्लभा राज
तवायफ की जिंदगी को बखूबी उभारा है आपने।
ReplyDeleteसादर
तुम्हारी निगाहें हमें जीना सीखा गई,
ReplyDeleteतुम्हारी बंदिशे हमें लिखना सीखा गई|
तारीफ़ और क्या करे गुस्ताख दिल
तुम्हारी उल्फ़त हमें महकना सीखा गई|... अब ज़िन्दगी से शिकायत कैसी !
बहुत खूब
ReplyDeleteतुम्हारी निगाहें हमें जीना सीखा गई,
ReplyDeleteतुम्हारी बंदिशे हमें लिखना सीखा गई|
तारीफ़ और क्या करे गुस्ताख दिल
तुम्हारी उल्फ़त हमें महकना सीखा गई|
Chhoo gayi ye baatein!!
दिल को छू लेनेवाली रचना है....
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