बंदिनी तेरे प्रेमपाश में,
तरंगिनी हूँ आकाश में|
अम्बुद बन बरसूं इला पर
किंकर बन पूजूँ शिला पर|
भूतेश तेरी मन्दाकिनी मैं,
अर्धनारीश्वर!अर्धागिनी मैं|
तू अर्णव, समाहित कुलंकषा मैं,
मृगांक!तेरी हिरण्य-प्रभा मैं|
जब डूबूं तू अडिग पतंग है|
अनुरागिनी तेरी अनुचारिणी मैं,
चित चोर तेरी सहचारिणी मैं|
स्वाति वल्लभा राज
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteहर सूरत में तेरी हूँ बस...
शुभकामनाएँ.
भूतेश तेरी मन्दाकिनी मैं,
ReplyDeleteअर्धनारीश्वर!अर्धागिनी मैं|
तू अर्णव, समाहित कुलंकषा मैं,
मृगांक!तेरी हिरण्य-प्रभा मैं|....
प्यार था , प्यार है , प्यार रहेगा ...
प्यार भरे हर दिन की शुभकामनायें प्यार के साथ
बहुत मनभावनी रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर,
ReplyDeleteहर सूरत ,हर शक्ल में मै तुम्हारी ही हु...
बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति :-)
बहुत ही सुन्दर एहसास और समर्पण का भाव है ...बेहतरीन रचना
ReplyDeleteतू अर्णव, समाहित कुलंकषा मैं!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, अलंकृत रचना!