गौरवाशालिनी!यह पुरष्कार,
प्रतिष्ठा या फिर तिरस्कार?
“गौ:”,अवशा” और अलिनी”,
या केवल मैं गौरवाशालिनी?
कनक समान जो मोरी प्रवृत्ति,
पाने की क्यों फिर पुनरावृति?
मादकता जो तुझ पे छाये,
क्यों ना मुझसे दूर फिर जाये?
महाठगिनी,जो मैं माया,
पकड़े क्यों फिर मोरी छाया?
“तिरगुन” फांस लिए जो तोहिं,
उलाहना ना दियो फिर मोहि||
स्वाति वल्लभा राज
बहुत सुंदर ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...
ReplyDelete“तिरगुन” फांस लिए जो तोहिं,
उलाहना ना दियो फिर मोहि||
“गौ:”,अवशा” और अलिनी”,
ReplyDeleteया केवल मैं गौरवाशालिनी?
क्या analysis है! अतिउत्तम!
बहुत सुंदर!
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteवाह ! बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर!!!
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