यूँ हीं कल नींद उचट गयी
वक्त देखा तो १२ बज रहे थे|
थोड़ी बेचैनी सी लगी तो
बाहर निकल आई|
क्षात्रवास के प्रांगण में
मंदिर के समीप सुगबुगाहट थी कुछ|
सहसा आवाज़ आई “पुच्च”,
कौतुकता ने घेर लिया|
समीप गई तो देखा
दूरभाष पर ही चुम्बन की झड़ी थी|
मुझे देख थोड़ा घबराई मगर
निर्लाज्त्ता से कहा,
दी! haappy kiss डे!
मैं निरुत्तर सी वापस मुड गई|
स्वाति वल्लभा राज
:) ॥ आज कल शायद यह आम बात है ...
ReplyDeleteबहुत खूब, लाजबाब !
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