जलते हुए ख्वाबों के अध-जले
राख बटोरने हम चलें|
प्यार के इस इल्ज़ाम को भी
खुद को सौपने हम चलें|
तिनका-तिनका हो वजूद मेरा
जो बिखरा था तेरे आशियाने में,
गैरों की महफ़िल में अब
दामन में समेटने हम चलें|
वो राख जिसमे अब भी मौजूद है
हमारे प्रेम की तपिश,
उस तपिश से ता-उम्र
रोटियां सेंकने हम चलें|
वो रोटी तो अध-पकी ही रहेगी अब
पर साँसों के विराम को
इसी से रोकने हम चलें|
वो रोटी जो कभी सिकीं थी नरम
याद तो बहुत आएगी|
पर तेरे नफरत की आग में जले
रोटियों को भूलने हम चलें|
स्वाति वल्लभा राज
राख बटोरने हम चलें|
प्यार के इस इल्ज़ाम को भी
खुद को सौपने हम चलें|
तिनका-तिनका हो वजूद मेरा
जो बिखरा था तेरे आशियाने में,
गैरों की महफ़िल में अब
दामन में समेटने हम चलें|
वो राख जिसमे अब भी मौजूद है
हमारे प्रेम की तपिश,
उस तपिश से ता-उम्र
रोटियां सेंकने हम चलें|
वो रोटी तो अध-पकी ही रहेगी अब
पर साँसों के विराम को
इसी से रोकने हम चलें|
वो रोटी जो कभी सिकीं थी नरम
याद तो बहुत आएगी|
पर तेरे नफरत की आग में जले
रोटियों को भूलने हम चलें|
स्वाति वल्लभा राज