Wednesday 3 August 2011

भरा है मन मेरा

भरा है मन मेरा अभी खालीपन से|
कभी यादों के लुका-छिपी खेलते बचपन से,
कभी कल को सजाती,आज घिसी उबटन से| 
कभी महक समेटे भी विषधरों के बीच खड़े चन्दन से,
कभी जीवन की नरमी का साथ देती सुखी हुई परथन से,
कभी भीड़ में भी एकांत के सिहरन से|

कभी उम्मीदों के चिथड़े ढकती उतरन से,
कभी किसी का पेट भरती थाली के जूठन से,
कभी भावनाओं को भी जमती हुई जामन से|

कभी सपनों का हकीकत की नदी में विसर्जन से,
कभी समाज के टूटे हुए मतलबी बंधन से,
भरा है मन मेरा अभी खालीपन से|
स्वाति वल्लभा राज