Sunday 8 December 2013

धड़कन में ''आप '' है




मन मयूर सा नाचे, अंखियों में अविरल धार है 
सच्चाई और निष्ठा के आगाज़ का अंदाज़ है
कब तक चुप रहते,सहते-कुढ़ते 
बेईमानी ना पल भर स्वीकार है । 

अंगड़ाई लेकर उठे हो अब की 
फिर तुम कहीं ना सो जाना 
सपूत हो,सपूत हीं रहना 
लालच के दरिया में तुम भी,हमसे कहीं ना खो जाना । 

कीचड़ में खिलने का साहस 
करता है केवल ''अरविंद''  हीं 
आत्म-विश्वास से लबरेज मन , सत्य पथ- प्रशस्त है 
साँसों में आस और धड़कन में ''आप '' है । 



स्वाति वल्लभा राज 

Thursday 21 November 2013

सम्भालूँ और सम्भलूँ कैसे




मुट्ठी जो भिंची 
रेत सा फ़िसल गया,
जो खोली अंजुरी 
फुर्र सा उड़ गया । 
तू हीं बता 
अब ऐ रिश्ते!
सम्भालूँ और
सम्भलूँ कैसे ???

स्वाति वल्लभा राज

Monday 30 September 2013

मानसिक विछिप्त ?



यह घटना आज सुबह की है जिसने मेरा मानसिक संतुलन बिगाड़ दिया है |मेरे आँखों के सामने हीं यह घटना मेरे साथ पी .जी. में रहने वाली एक लड़की के साथ घट गयी और एक डर जो हर समय रहता है,वो और भी घर कर गया |घटना उसके साथ घटी पर शायद विक्टिम मैं भी बन गयी क्योंकि हर एक पल को मैं अब भी महसूस कर रही हूँ और अजीब सी मानसिक उहा-पोह में फस गयी हूँ |


''सुबह ७.३० की बस मिस ना कर दूँ, इस फिराक में जल्दी जल्दी सीढियों से उतर रही थी |पैर थोड़ा मुड़ा भी मगर ध्यान नहीं दिया की आफिस देर से गयी तो देर से आना होगा |शाम ७ बजे भी लौटते वक्त मुझे डर हीं लगता है |हर रोज लगता कहीं आज कोई हादसा ना हो जाये|एक तो अनजाना  शहर, भाषा की परेशानी और खुले हुए मेन  होल्स  तिस पर रोज की ख़बरें,सड़क पर घूमते हर आदमी में मुझे हैवान हीं दिखाती हैं |बहुत सही तो नहीं है यह पर डर बेवजह भी नहीं है |

खैर भागते -भागते जैसे सड़क पर पहुंची  तो अचानक सामने से आते एक आदमी ने एक लड़की के  सर पर मारा और चोटी खींच दी |मैं अवाक रह गयी पर इतना समझ गयी कि वह मानसिक विछिप्त है |अभी अचानक के इस वार से बेचारी वो सम्हली भी नहीं थी कि उसने बतमीजी शुरू कर दी  और गंदे इशारों के साथ यहाँ- वहाँ हाथ भी लगाने लगा |आप धापी में वो निचे गिर गयी तब तक लोग भी इकट्ठे  हो गए और उस पागल को मार कर भगाया |लड़की  डर से काँप रही थी और बड़े मुश्किल से खुद को समेटे खड़ी थी|मैं भाग के पास गयी तो देखा वो मेरे साथ हीं रहती है| ऑफिस जाने  की स्थिति ना तो उसकी थी ना मेरी |हम दोनों वापस आ गए और उसे मैं अपने हीं कमरे में ली आई |

हर समय कोशिश करती रही कि उसे समझाऊं कि कोई बात नहीं वो पागल था |हादसा था.जो किसी  के साथ हो सकता है |मगर एक बात दिमाग में घर कर गयी थी  और जो शायद कभी ना निकले|क्या शारीरिक हवस इतनी प्रचंड है कि जो इंसान पागल है, उसे भी पता है कि इस भूख को कैसे और किसके साथ मिटानी है? जो वाकई मानसिक रूप से असंतुलित हैं , उन्हें इतनी समझदारी कैसे आ जाती  है? क्या नारी सिर्फ भोग की वस्तु हीं दिखती है,फिर चाहे सामने वाला मानसिक विछिप्त हो या नहीं ...?

ये कैसी गुत्थी है? मेरा डर ,वाकई में बेवजह नहीं है |सुबह के समय, सलवार कमीज पहने,दुपट्टा सलीके से ओढ़े, पुरे चेहरे पर स्टाल लगाए ,जब ऐसी घटना मानसिक विछिप्त द्वारा घटाई  जा सकती है तो तथाकथित बुद्धजीवियों परन्तु मानसिक रोगियों के बीच हम कितने सुरक्षित हैं? ''

स्वाति वल्लभा राज 

Wednesday 25 September 2013

शहज़ादी रोटियाँ




खुद भी नाचे, तुझे नचाये 
गोल-गोल रोटियाँ ,
भूख है जिसके पैर दबाती 
शहज़ादी  रोटियाँ। 

सरहद की गोली में देखो 
नर्म-नर्म रोटियाँ, 
कोठे के धंधे मे हंसती 
गर्म-गर्म रोटियाँ। 


भूखे-नंगों की चंदा जैसी 
दूर हैं रोटियाँ, 
चूल्हे की ठंडक में सिंकती 
ख्वाब सी रोटियाँ।  

बेबसी की राह में 
गायब हैं रोटियाँ,
बेंच दो ईमान,धर्म तो   
हाज़िर हैं रोटियाँ । 

खाते नहीं हो तुम हीं मगर 
सिर्फ रोटियाँ,
बहरहाल तुम्हे भी तो 
खाती है रोटियाँ । 

स्वाति  वल्लभा  राज 

Tuesday 24 September 2013

उफ़ जिंदगी,हाय जिंदगी

गुमराह, तो कभी राह्परस्त है जिंदगी
गुलाम, तो कभी आजाद है जिंदगी,
चिल्लरों की फुहारों में ही सुकून तो कभी
दौलत की बारिश में,बेकरार जिंदगी ।
दाल-रोटी में खुश तो कभी
छप्पन भोग में तबाह जिंदगी ,
आह कभी तो वाह  जिंदगी
उफ़ जिंदगी,हाय जिंदगी |
स्वाति वल्लभा राज
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

Sunday 1 September 2013

नाबालिग!



नाबालिग!
नाबालिग का मतलब क्या होता है?क्या उम्र बालिग़ और नाबालिग का फर्क बता सकती है?नाबालिग का मतलब आम समझ में शायद यह होता है की समझदारी  का स्तर उतना नहीं होता और गलत सही का फैसला इंसान नहीं ले पाता|

पर मेरी समझ में ये नहीं आता कि अलग- अलग देशों में बालिग़ होने के लिये अलग- अलग उम्र क्यों निर्धारित है?क्या भौगोलिक भिन्नता का समझदारी और अंततः बालिगता से कुछ लेना -देना है ?यही नहीं बल्कि अलग-अलग कार्य-क्षेत्र के लिये भी अलग अलग उम्र का दायरा है |अपने हीं देश में देख लीजिए-वोट देने के लिये १८ वर्ष चाहिए मतलब आप बालिग़ हैं मगर शादी करने के लिये लड़की १८ वर्ष में बालिग़ और लड़का २१ वर्ष में|इसका क्या मतलब हुआ?देश के बारे में निर्णय  लेने  से ज्यादा बालिगता या समझदारी घर चलाने के लिये चाहिए?

६ महीने से वह नाबालिग था तो ३ साल की सजा|कपडे नोचते वक्त उसे अक्ल थी ना ?उसे ये पता था ना की कुकर्म करते कैसे है?शरीर में रौड घुसाते वक्त क्या वाकई उसकी उम्र छोटी थी? घसीट कर बस से बाहर फेंकते वक्त भी क्या वह नाबालिग हीं था?वाह!सच में देश विडंबनाओं का देश होता जा रहा है|मुझे तो लगता है कार्य पालिका,न्याय पालिका और हमारी भावनाएं पंगु होते जा रहे  हैं|

क्या वाकई में न्याय हो गया?पूरे  देश के दरिंदों से सबक ले ली? १८ वर्ष से पहले जितनी मर्जी चाहे बलात्कार कर लो,हैं तो नाबालिग ना!

अगर वाकई उम्र को हीं पैमाना बनाना है तो फिर ऐसा कानून क्यों नहीं है कि अगर नाबालिग से बलात्कार होता है तो उसकी सजा ज्यादा हो?सिर्फ नाबालिग बलात्कार करे तो उसकी सजा कम क्यों? हैरान हो जाता है मन ये सब सोच कर|कल अगर कन्या-भ्रूण हत्या और बढ़ जाये तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए|क्योंकि तब सभ्यसमाज भी इसका भागीदार होगा|जब यह बात मन में गहरे  बैठ जाएगी कि हम सुरक्षा नहीं दे पाएंगे अपने बेटियों को तो किसी वहशी के वहश के शिकार से अच्छा होगा उसे कोख में हीं मार दें|

मानसिक रोग है बलात्कार करना|इसका बालिग़ या नाबालिग होने से कोई मतलब नहीं होता है|कुकर्म,कुकर्म होता है|उम्र से क्या सम्बन्ध?अगर इसे दूसरे नज़रिए  से देखा जाये तो ऐसे भी तो सोचा जा सकता है कि जब कम उम्र है तो ये हाल है,बढती उम्र के साथ दरिंदगी  कितनी बढ़ेगी|३ साल की सजा कुछ नहीं बदल देगा| सामाजिक  और कानूनी डर बहुत जरुरी है अब|वैसे हीं सामाजिक मूल्यों का पतन हो रहा है,अगर रोका ना गया तो यह पतन हमें गर्त में ले जाएगा....

आज अपना नाम लिखने का मन नहीं है यहाँ ...यह तो हर मन के दर्द की आवाज़ है....

Sunday 18 August 2013

आजाद है हम !



कल की गुलामी अंग्रेजों की थी,
पर आज तो हम आजाद हैं ना?
डर,आरजकता,लोभ,स्वार्थ अब,
हर कोने में आबाद  है|


बर्बर,डच,मुग़ल,तुगलक,
तो  एक के बाद एक थे आए|
अब तो आलम ये है प्यारे,
सारी नीचता एकजुट है छाये|

कल हीरे लूटे,मंदिर लूटे,
अस्मत की चादर छीनते आए,
आज इनमे से आज कौन बचा
विश्वास की लूट चार चाँद लगाए|

गुलामी की मोटी जंजीरें,
पहले से भी कसी हुई,
चेहरे और तरीके बदले,
नीयत वहीँ पर फसी हुई |

मत जगना,तुम हो 'आम नागरिक'
कोने मे दुबके सोये रहना,
किसी-किसी मौको पे कभी,
अंगडाई लेकर फिर सो जाना|

हम गुलाम कल थे आज भी है
बस मौके और हालात हैं बदले|
फितरत तो अब भी रक्त-चूषक
शोषक के अंदाज़ हैं बदले|

स्वाति वल्लभा राज

Wednesday 10 July 2013

जीवन (हाइकु)












चौपड़ हीं  है,
जीवन हर पल,
दाँव पर जो |

एक आसरा,
तुझ पर मालिक
बना रहे यूँ|

कंटील पथ,
दिशाएँ विचलित
रहे अडिग |

मनोबल है,
तुझ पर आश्रित
अच्युत रहे |

स्वाति वल्लभा राज

 

Tuesday 18 June 2013

ठूँठ



दिखने को हरा -भरा मन
अंदर से ठूँठ है|
एहसासों कीं हो रही बिक्री
हर किरदार यहाँ झूठ है|

यकीं आया था कल
जिन आँखों के प्यार पर|
समझ आया आज वहाँ
हवस और लूट है |

क्या करे कोई शिकवा और
गिला उस खुदाई से|
ना जाने  किस तले
वो खामोश और मूठ है |

स्वाति वल्लभा राज

Monday 10 June 2013

रिश्ते



विश्वास,प्रेम,सहयोग पर
हर पल एक आघात है |
छल,बल और झपट की
चहुँ ओर झंझावात है|

मन शांत,विस्मित है ठगा सा
हर आस पर कुठाराघात है|
उम्मीद की हर एक किरण पर
लालच का वज्राघात है |

जिन रिश्तों को हम सींच कर
स्वपन मे हीं थे आकंठ निमग्न,
चतुरायी,स्वार्थ के फलों से
ना जने कैसे हुए आच्छन |


मद,लोभ में डूबे ये रिश्ते
क्या कभी उबर पाएंगे
या यूँ हीं स्वार्थ में डूबे
हमको डूबा दे जाएँगे|

स्वाति वल्लभा राज

Saturday 19 January 2013

पुरुषार्थ




जिस्म को नोचा,रूह खसोटी
तब भी चैन नहीं आया |
पुरुषार्थ साबित करने का
राह ना दूजा तुम्हे भाया ?

संयम,हया क्यों मेरा गहना
जो तुम्हें नहीं उसका सम्मान,
कामुक तुम अमर्यादित
हमे क्यों देते फिर हो ज्ञान?

दूध ने सींचा जिन पौधों को
सृष्टि को हीं लील रहे,
जीवन दायिनी उस अबला का
स्वत्व हंसुवे से छील रहे|

लाज नहीं तुमको हे निर्लज्ज
दुष्कर्मों की लाज बचाते,
अट्टहास लगाते ऊपर से
हमें चले सहुर सिखाने |

 गिध्ह भी नोचते हैं मुर्दे को
अपने भूख की शांति को|
तुम्हे कौन सी भूख बिलखाती
जो तारते धर्म की कांति को |

याद रखो हम अबला तब तक
जब तक क्षमा का गहना लादे,
जिस पल गहना फेंक दिया
हो जाएँगे चंडी माते |

तीनों लोक पड़ेंगे फिर कम
खुद का मुँह छिपाने को|
तब देखेंगे पुरषार्थ का दम
नारी को नीच जताने को |

स्वाति वल्लभा राज

Thursday 17 January 2013

परिवार




कई दिनों से एक घटना आँखों के सामने बार-बार आ रही है |दर-असल मेरे हॉस्टल से मार्केट जाने के रास्ते में कुत्ते के छोटे-छोटे बच्चे हमेशा खेलते दिख जा रहे हैं |कभी एक दूसरे पे सोये हुए,कभी लड़ते हुए तो कभी आते जाते लोगों के पीछे भागते |कभी-कभी वो सपरिवार दीखते थे |कुत्ता,कुतिया ,और उनके ६ बच्चे |एक हँसता खेलता परिवार |परसों जब मैं जा रही थी तो कुछ कौवे एक पिल्ले की पूंछ खीच रहे थे |वो बेचारा इधर उधर भाग रहा था |इससे पहले की मैं कुछ करती,बाकी के उसके भाई बहन कौवों को भगाने लगे |देख कर अजीब सी खुशी भी हुई और थोड़ी निराशा भी हुई |आज शाम में उसकी माँ उन्हें दूध पीला रही थी और कुत्ता,कौवों को भगा रहा था |मन को फिर अच्छा लगा और हताशा ने भी घेरा|

वहीँ  दूसरी  ओर मेरे हॉस्टल में खुद एक कुतिया ने बच्चे जने थे जब हमारे पेपर चल रहे थे |इक्जाम के बावजूद कई लड़कियां उन पर अच्छा-खासा ध्यान दे रही थी |उनके खाने पीने  का  पूरा ध्यान रखते थे | कुछ ने कपडे के कुछ  टुकड़े भी रख दिये  थे |उन पिल्लों की माँ के लिये हर शाम कोई ना कोई दूध भी ले आता था |फिर हमारी छुट्टियाँ हो गयी |जाने से पहले सब परेशां थे कि अब वो कैसे रहेंगे |मगर हॉस्टल के भैया जी ने  जिम्मेदारी ली |जब हम वापस आए तो ५ पिल्लों में से सिर्फ २ बचे थे |उनकी हालत भी अच्छी नहीं थी |भैयाजी से पूछा तो उन्होंने कहा ठंड की वजह से वो मर गए |जहां तक मैं भैया जी को जानती हूँ उन्होंने ख्याल रखा होगा उनका |मगर शायद  नियति |परसों हीं कुछ लड़कियों ने ध्यान दिया की दोनों पिल्लों और उनकी माँ को खुजली हो गयी |उनके बाल झड़ने लगे थे |वार्डन को बताए जाने पर उन्होंने एहतियात के तौर पर उन्हें हॉस्टल के बाहर कर दिया ताकि लड़कियों को बिमारी ना लग जाये |आज सुबह मैंने उनको हॉस्टल के बाहर हीं किकुडे देखा |बहुत ढूंढने पर भी मुझे सिर्फ एक हीं पिल्ला दिखा |शायद एक मर गया है |वो कुं-कुं करके रो रहे थे |मुझसे देखा नहीं गया |ब्रेड के कुछ टुकड़े डाल कर मैं चली आई मगर मन अशांत हीं रहा |शाम में वो भी नहीं दिखें |

दोनों घटनाओं ने मुझे काफी कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया था |एक का परिवार जो हमारे इतने निगरानी में था.ठंड से बचाने के सारे उपाय किये गए थे |उनकी भूख-प्यास,जरूरतें सभी ध्यान में रखी गयी गयी थी |फिर भी वो सरवाइव नहीं कर पायें| क्यों?दूसरी ओर दूसरे कुत्तों का परिवार जो पूरी सर्दी बाहर हीं रहे,पता नहीं कहाँ से खाया-पीया,रात में ठंड से कैसे बचे,फिर  भी वो बच गए|और ना सिर्फ बचे,बल्कि मजे में दीखते है|बच्चे भी काफी हृष्ट -पुष्ट हैं |क्यों?

एक परिवार ने अपना अस्तित्व खो दिया |शायद इसलिए क्योंकि परिवार का मुखिया कभी उनके साथ नहीं दिखा,माँ ने बहुत कोशिश की थी मगर इतने ख़याल के बावजूद भी वो ना बचा पाई|वो बिखर गए क्योंकि वो कभी मुझे एक-दूसरे की मदद करते नहीं दिखें|हालांकि लोगों ने हीं काफी ध्यान रखा और शायद इसलिए उन्हें एक -दूसरे के ध्यान रखने का मौका हीं नहीं मिला |वहीँ  दूसरे  परिवार ने विषम परिस्थितियों में भी एक-दूसरे का साथ दिया |परिवार का मुखिया हर समय साथ खड़ा दिखा |  तो क्या आपसी प्यार दुलार,स्नेह,की वजह से हीं वो बच गए |परिवार की एकता उन्हें बचा ले गयी और दूसरी ओर दुसरा  परिवार सही मार्ग-दर्शन,नेतृत्व  और रख-रखाव के अभाव में अपना अस्तित्व  खो बैठा ?

ये सारे  प्रश्न मन में पता नहीं कब तक उथल-पुथल मचाते रहेंगे क्योंकि आज हम भी उस  कुत्ते  के परिवार वाली जिंदगी जी रहे है जहाँ हम परिवार के मुखिया की अगुवाई स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं|सुख-सुविधाओं में पल-बढ़ तो रहे हैं  पर एक दूसरे का ख्याल नहीं रख रहे  हैं | एक-दूसरे के लिये खड़े नहीं हैं |पता नहीं कब तक इन हालात में अपना अस्तित्व बचा पाएँगे या एक दिन यूँ हीं गुम हो जायेंगे |

स्वाति वल्लभा राज 

Thursday 10 January 2013

राधा -कृष्ण




जब कभी भी प्रेम पर चर्चा हो रही हो तो मानस पटल पर सबसे पहले कृष्ण-राधा की युगल  छवि अंकित होती है । हमारे संस्कारों में,पूजापाठ में ,ध्यान में,प्रेरणा में, सर्वत्र उनका प्रेम विद्यमान है । जहां कहीं भी पूर्ण आस्था और विश्वास है,वहाँ राधा हैं और जहां कहीं भी उस विश्वास की लाज रखी जाये ,वहाँ श्री कृष्ण हैं|यह समझना  काफी मुश्किल है कि उनका प्रेम परकाष्ठा पर था या एक-दूसरे के प्रति समर्पित भाव की हीं परकाष्ठा उनका प्रेम |राधा-कृष्ण के सम्बन्ध पर कई विचार-धाराएं हैं|कुछ का मानना है उनका विवाह हुआ था |दोनों के सम्बन्ध दो तरह से वर्णित हैं-स्वकीय रास और परकीय रास|स्वकीय उनके शादी शुदा सम्बन्ध का वर्णन करते हैं जबकि परकीय अलौकिक परम  सम्बन्ध को|गर्ग संहिता के अनुसार राधा-कृष्ण का विवाह स्वयं ब्रम्हा जी ने संपन्न कराया था |कान्हा उस समय महज दो वर्ष सात माह के थे तब नन्द बाबा उनके साथ खेलते-खेलते भांडीर वन पहुँच गए|अचानक तेज आंधी-तूफ़ान उठ गया और हर तरफ घुप्प अँधेरा छा गया |तभी राधा रानी प्रकट हुई |नन्द बाबा  कान्हा को उनकी गोद में देकर चले गए|तब श्रीकृष्ण किशोरावस्था में गए|श्रीकृष्ण को इस रूप में राधा रानी के साथ देख कर ब्रम्हाजी प्रकट होते हैं और उन दोनों के युगल छवि की स्तुति करने लगते हैं|श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न होते हैं तब ब्रह्मा जी उन्हें याद दिलाते हैं कि ६० हज़ार वर्षों तक उन्होंने इसी युगल छवि के दर्शन  हेतु तप किये हैं |और उन दोनों का विवाह कराने की इच्छा व्यक्त करते हैं |दोनों की सहमति से स्वयं ब्रम्हा जी उन दोनों का विवाह संपन्न कराते हैं |शादी के बाद कई दिनों तक राधा कृष्ण वन में विहार करते हैं और रास रचाते हैं |फिर जब श्री कृष्ण को नन्द बाबा की याद आती है तो वे वापस बाल्यावस्था में जाते हैं |राधा रोने लगती हैं फिर आकाश वाणी द्वारा उनके अवतार का कारण याद दिलाने पर कान्हा को वापस नन्द बाबा के पास छोड़ देती हैं |

जिस प्रकार शिव की शक्ति पार्वती हैं उसी प्रकार श्री कृष्ण की शक्ति राधा हैं |राधिका को आदि शक्ति का अंश मानते हैं |श्री कृष्ण और राधा साथ मिलकर पूर्ण सत्य बनते हैं |महाभारत और भगवत पुराण में कहीं पर भी ''राधा'' नाम का जीक्र नहीं है|सिर्फ यह वर्णन मिलता है कि श्रीकृष्ण गोपियों में किसी एक के काफी नजदीक थे |निम्बार्क सम्प्रदाय और गौडीय वैष्णव पंथ के अनुसार राधा कृष्ण का सम्बन्ध पारकीय है|इसी वजह से उनके संबंधों का ज्यादा वर्णन पुरणों में नहीं मिलता |श्रीकृष्ण, मधबन में गोपियों के निः स्वार्थ प्रेम के प्रति विशेष अनुराग रखते थें| उन गोपियों में राधा रानी सर्व प्रमुख थीं |
राधा को कृष्ण की सहचारिणी,प्रेरणा और शक्ति के रूप में देखा गया है|उनका प्रेम दिव्य है जो किसी भी सम्बन्ध से ऊपर है और किसी भी दैहिक रिश्ते से परे |श्रीकृष्ण और राधा एक हीं सिक्के के दो पहलु हैं|एक-दूसरे के बिना अपूर्ण और अस्तित्व हीन|श्री कृष्ण की परालौकीक अंतहीन भक्ति को पाना असाध्य है परन्तु उस भक्ति मार्ग को सहज  मोड़कर श्रीकृष्ण को पाने की धारा है -राधा| प्रेम के विशुद्ध प्रतिरूप हैं राधा-कृष्ण |निः संदेह इनका प्रेम किसी भी सम्बन्ध से ऊपर है |प्रेम और भक्ति में समर्पण,त्याग,साथ और की जाग्रत रूप हैं राधा-कृष्ण|दो आत्माओं का मिलन हैं राधा-कृष्ण|जीवन-मरण के चक्रव्यूह और  जड़-चेतन की गति से से मुक्त हैं राधा-कृष्ण| उस आनंदमयी शक्ति.भक्ति,प्रेम,बलिदान के रूप को नमन |

स्वाति वल्लभा राज