सूरत-ए -आम और सीरत-ए -मामूली निकले हम तो क्या
हँस के ज़रा कर दो बिदा,
सफ़ेद जोड़ों वाली आज हमारी बारात निकली है ।
हँस के ज़रा कर दो बिदा,
सफ़ेद जोड़ों वाली आज हमारी बारात निकली है ।
सुकून का हर गुल रखा तुमसे दूर हमने
नालायकी के चादर में लिपटी,
आज हमारी औकात निकली है ।
नालायकी के चादर में लिपटी,
आज हमारी औकात निकली है ।
दोज़ख सी ज़िंदगी का कर दिया था बसेरा जहां
ख़ुदा के दर से आज तुझको
प्यारी सी सौगात निकली है ।
सफ़ेद जोड़ों वाली आज हमारी बारात निकली है।
ख़ुदा के दर से आज तुझको
प्यारी सी सौगात निकली है ।
सफ़ेद जोड़ों वाली आज हमारी बारात निकली है।
स्वाति वल्लभा राज