Sunday 20 November 2011

ओस है ये जिंदगी

ओस की बूंदों की तरह ये जिंदगी,
रात की कोशिशों में बनती और
सूरज की पहली किरण में बिखर जाती|



अगले पल से फिर वही नाकाम कोशिश,
खुद को बनाने की|
बनने के बाद कुछ वक़्त ठहराने की|
ठहराव के बाद कुछ पल जीने की
पर जीने से पहले ही एक डर गुम जाने का|
फिर डर  के सच्चाई का सामना|

ओस की तरह दूब पे बिखर कर
चमकना चाहे ये ज़िन्दगी|
पल भर को ही निडर हो,
जी जाना चाहे ये जिंदगी|

swati vallabha raj












Friday 18 November 2011

जी करता है



तुम्हारे कंधे पे सर रख कर सब कुछ भुलाने को जी करता है|
तेरी  अनकही बातों  पे  फिर से  मुस्कुराने को  जी  करता है|

तुम   ढूंढों  मुझे  फिर    बेताबी  से  फिर ,
तो  भीड़   में  गुम जाने  को   जी करता है|
सम्हालो मेरे लड़खड़ाते कदम एक बार फिर,
तो आज होश खो जाने को जी करता है|

तुम पुकारो मेरा नाम दिल से तो
तेरी बाहों में ही छुप जाने को जी चाहता है|
क्या कहूँ अब और ऐ वफ़ा,
आज फिर से जी जाने को जी चाहता है|


 स्वाति वल्लभा राज












|