Monday 19 June 2017

सोच की नींव

हमारा देश गांवों का देश है | हमें अपने गांव की सादगी वाली संस्कृति पर गर्व भी है | मगर गांव है तो संस्कार पक्के ही बनेंगे इस मिथक से बाहर आइये | शादी- ब्याह के समय जो गांवों में नाच कराया जाता है. वो किसी भी दृष्टिकोण से सांस्कृतिक कार्यक्रम तो नहीं ही होता है |  आप चाहे उसे मनोरंजन का साधन मानें या और कुछ | मगर ये आपकी मानसिकता गढ़ता है और आपके बच्चों का व्यक्तित्व | अश्लील गाने और उनपर अश्लीलता की हदें पार करता नाच | लगभग नंगा नाच ! ये सिर्फ एक तस्वीर नहीं है | आप झांकिए कि इस तस्वीर में आपके बच्चे की मानसिकता की नींव है | गौर से तस्वीर देखिये जो कि एक नाच के वीडियो का हिस्सा है और आस-पास के बच्चों को देखिये|  बच्चों की प्रतिक्रियाएं देखिए और सोचिये  ये क्या परोसा गया है उनके सामने ? तस्वीर के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ | मगर मजबूर हूँ दिखाने को |

 बलात्कार, छेड़-छाड़, यौन हिंसाएं के नये तरीकें समाज का आइना बनती जा रही हैं | हम अक्सर कानून और प्रशासन को दोष देकर बच जाते हैं |  कभी अपने गिरेबान में झाँक कर देखने की कोशिश ही नहीं करते | आँखें मूंद  लेते हैं | क्योंकि हमारे सामाजिक परिभाषा के अनुसार ना तो कभी परवरिश गलत हो सकती है और ना अपने बलात्कार करते हैं! परवरिश गलत होने का बिलकुल ये अर्थ नहीं कि माँ बाप गलत सिखाते हैं|  बल्कि ये अर्थ कि माँ बाप समझ ही नहीं पाते कि कौन सी घटना बच्चों के मन में क्या बसा रही और उन्हें क्या बना रही | १०-११ साल का लड़का क्यों स्कुल में सीढ़ियों के नीचे खड़ा रहता है कि कब लड़की ऊपर से आये और वो देख पाये कि स्कर्ट के नीचे क्या है? चुन्नी के नीचे सूखते बहन के अंतर् वस्त्रों को देख जब खिखियता है और कभी बहन उसे सूखाते समय ढकना भूल जाए तो ढक कर सुखाने की हिदायते देते वक्त भी माँ बाप नज़र अंदाज ही तो करते हैं न | तिस पर माँ- दादी की नसीहतें - ‘’ठीक ही तो कह रहा लल्ला ! तुमसे समझदार है|’

जीवन का हर दिन अखबार जैसा होता है | अच्छी और बुरी ख़बरों से भरा हुआ | अच्छे और सच्चे  पलों को हम कटिंग करके अपने पास सम्हाल कर रख लेते हैं और  गलत और बुरी ख़बरों से नज़रें चुरा लेते हैं | मगर ये गलत घटनाएं कभी-कभी दिमाग के कोने में जड़ जमा छिप कर बैठ जाती हैं और डोरमेंट रूप में रहती हैं | जैसे ही इनके मन मुताबिक अवसर आता है ये गलत विचार फल-फूल कर बड़ी हो जाती हैं और भयावह शक्ल अख्तियार करती हैं|

बच्चे सिर्फ टीवी देखकर नहीं बिगड़ते ना ही सिर्फ  पश्चिमी सभ्यता का कोढ़ लग रहा समाज में | कमियां हममें भी हैं | मानिये और दूर कीजिये | सच और अच्छाई की जीत तभी संभव है जब किसी भी परिस्तिथि में हम गलत के आगे ना झुकने के लिए दृढ संकल्पित हैं |स्वयं की गलतियां समझें, स्वीकारें और दूर करें | खिखिया कर टालना आसान है | बलात्कारियों के बीच रहना असंभव !

नोट - इस पोस्ट का अर्थ माँ बाप पर ऊँगली उठाना नहीं है | जड़ें खोदना है |


स्वाति