Sunday 21 February 2016

ब्राम्हणवाद

जब सब जे.इन.यु और रोहिल विमला काण्ड पर अपने बच्चों का  डर t.v. और F.B पर बता रहे तो मैंने सोचा मैं भी अपनी माँ का डर बता दूँ । कल देर रात मेरी माँ से बात हो रही  थी । बातो बातों में उन्होंने पूछा बेटा  तुम ज्यादा पढ़ती रहती हो तो बताओ क्या सचमुच जो कोहराम मचा रखा है कि ''ब्राम्हणवाद '' ख़त्म करो तो ये लोग इतने हाथ धो के पीछे क्यों पड़ गए हैं ? कितने ब्राम्हण बचे हीं हुए हैं जो खौफ भर रहे सब । और फिर बताया की मेरे परनाना  होम्योपैथ के डॉक्टर थे उन्होंने गाँव में सबके शिक्षा के लिए कितना कष्ट उठाया था । चमार , डोम सब आते थे पढ़ने को । हमने तो क्या दूर दूर तक रिश्तेदारी में भी ये ''ब्राम्हणवाद '' क्या होता है , ये ना दिखाई दिया है न समझ आया है । 
मैं माँ को क्या समझाती । सिर्फ पूछा कौन सा न्यज़ चैनल देखती हो । और कहा  जो भी देखो डीडी न्यूज़ और ज़ी न्यूज़ जरूर देखा करो ।  राजनीति के अलावा बहुत सी पॉजिटिव बातें दिखेंगी और इन सब विषयों पर दूसरा दृष्टिकोण भी दिखेगा । 
बहुत खोजने पर भी accurate डेटा नहीं मिला कि  वाकई में अभी संख्या में ब्राम्हणों की स्थिति क्या है जो '' खौफ '' है ''ब्राम्हणवाद 'को लेकर । मगर जो भी डेटा मिला उससे औसतन ५% जनसँख्या निकल कर आई जो हर सेन्सस में घटती जा रही । 
मैं इंकार नहीं करती कि हरिजनों का पूजा पाठ में रोक , मंदिर में परवेज वर्जित इत्यादि पूरी तरह मनगढंत है । मैं उस परिवार से हूँ जहां लहसुन प्याज आज भी घर में नहीं जाता मगर समय के साथ परिवर्तन को सबने सहर्ष स्वीकारा है । मैंने ये मेरे रिश्तेदार में किसी ने ये जाना है की ''ब्राम्हणवाद '' किस बला का नाम है ? हम मुसलमानों के साथ भी एक थाली में खाने में गुरेज़ नहीं करते । फिर ये कौन से ब्राम्हणो के ''ब्राम्हणवाद '' की बातें करते हैं आप ? और ये खान हैं मुख्य प्रश्न कितने  है ?और क्या मुट्ठी भर ब्राम्हणों के स्वार्थ और पोंगे सोच का लबादा सब पर डाल उन्हें चपटे में तो लेंगे हीं इस शब्द की आड़े में देश बर्बाद करेंगे ?
अरे ये ''ब्राम्हणवाद '' कौन सी परम्परा है जिसे संख्या में इतना कम होते हुए भी आज़ादी के इतने वर्ष बाद भी सब डरे सहमे हैं ? और ये दर की सचाई क्या है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि डर  का पलड़ा दूसरे खेमे में कब का जा चूका है और आप अभी भी वही राग अलाप रहे ? कश्मीरी पंडित सबसे बढ़िया उदाहरण है । वक़्त मिले तो इन सबको पढ़िए और समझिए । शायद एक परम्परा आप हीं ख़त्म कर दें । 
स्वाति वल्लभा राज 

Monday 8 February 2016

शमी को श्रद्धांजलि

samajwadi party celebration child death name के लिए चित्र परिणाम

समाजवादी पार्टी के ब्लॉक जीत पर जिस मासूम की जान गयी , मुझे अभी तक समाज सेवक  राहुल गांधी और केजरीवाल की प्रतिक्रिया नहीं दिखी । कारण शायद ये कि  मुसलमान की जीत में मुस्लिम बच्चे की मौत ! यही समीकरण अगर ''सुवर्ण-दलित '' या हिन्दू मुस्लिम का होता तो  साहबज़ादे की पदयात्रा और भूख हड़ताल शुरू हो चूका होता । कई समझदार लोग भी जागृत हो गए होते अगर भाजपा शाषित प्रदेश होता तो । बंगलौर में तंजानिया के छात्रा के साथ जो हुआ , उसमें ना तो मिडिया को ना पार्टी उपाध्यक्ष और भावी प्रधानमन्त्री की दिव्य छवि लिए राहुल जी को ''असहिष्णुता '' दिखाई दी । 
 जीत का जश्न हर पार्टी ऐसे हीं  मनाते हैं और ये कोई पहली घटना नहीं जिसमें ऐसे वजह से किसी की मौत हुयी । मुझे याद है सीवान में भी ऐसा हुआ था । और ऐसा नहीं की सपा के माथे ठीकरा फोड़ा जा रहा । आंकड़े तो नहीं मिले मगर कोई दो राय नहीं की अन्य पार्टियों के जश्न में भी जानें गयी होंगी । 
इस पोस्ट का मकसद किसी पार्टी को क्लीन चिट देना कत्तई नहीं है ।  बस हम जैसे अंधी जनता को समझाने के लिए है । जिस किसी को नाक भौं सिकोड़ना हो , जरूर सिकोड़ें । मगर थोड़ा समझने की कोशिश करें ।उस माँ पर क्या बीत रही होगी ? हमारा खून तब ही क्यों खौलता है जब ''राजनैतिक फायदों वाले समीकरण '' हो? और अधिकाँश  मिडिया को भी कर्तव्य बोध का एहसास तब हीं क्यों होता है जब टी आर पी वाली न्यूज़ हो ?
कोई कल्कि अवतार  ये सब नहीं बदल सकता । सिर्फ हम और आप बदल सकते हैं । अपनी सोच का दायरा बढाकर । 
अखिलेश यादव के त्वरित कार्यवाही पर वो बधाई के पात्र हैं । मगर ऐसे लोगों की राजनीति में एंट्री बंद हो और ऐसे जश्नों पर रोक हो तब बात बने । 
स्वाति वल्लभा राज