Saturday 28 June 2014

नीच- जात ​




आज पंचायत जुटी थी 
फुलवा के लिए , 
नीच जात की  होकर
मंदिर में घुसने का दुःसाहस । 
आरोप था सिर्फ ,
प्रत्यारोप का तो सवाल  हीं नहीं, 
मैले कुचले चिथड़ों में 
खुद को ढाकने का विफल प्रयास करती । 
बड़ी बड़ी डबडबायी आँखों से 
आस लगाये,
मुखिया जी की ओर नज़र उठी 
पर तुरंत  नीचे हो लीं । 

कल दोपहर का माज़रा 
आँखों के सामने चल चित्र सा घूम गया
गन्ने  के खेत में जब मुखिया जी ने 
पीछे से दबोचा था उसे, 
मुंह पर हाथ  और गर्दन पर
हसियां रख जब अपने
पजामे का नाड़ा  ढीला किया था, 
और मर्दानगी साबित करने के  बाद 
कहा  था -
''फुलवा ! किसी को बताना नहीं,
मैं जात -पांत नहीं मानता 
जल्द हीं शादी करूंगा ''। 

गिद्ध की आँखों पर भी यकीं कर गयी फुलवा 
और आज मंदिर जा पहुंची 
ऊपर वाले को धन्यवाद कहने । 

तभी मुखिया जी के आवाज़ से 
तन्द्रा टूटी । 
''३ साल के लिए हुक्का -पानी बंद 
और पंचो  द्वारा समूहिक बलात्कार । 
ताकि फिर किसी  
छोटी जात  वालों की जुर्रत ना हो 
मंदिर को अपवित्र करने की ''। 

सन्न और स्तब्ध फुलवा 
तीन शब्दों में घिर गयी 
''छोटी जात , अपवित्र और बलात्कार ''। 


स्वाति वल्लभा राज 

Saturday 7 June 2014

छदम लिखती हूँ


छदम लिखती हूँ ,
कभी प्रपंच लिखती हूँ ,
लिखूं ना गर भाव , 
तभी कलंक लिखती हूँ ,

सोना उगल भी दें शब्द तो क्या 
भाव में जो पगे  नहीं ,
वो शब्द बेमोल हीं 
तृप्ति  में जो पके  नहीं ,


लूट लें वाह- वाही हीं पर 
अलंकृत, बेमोल शब्द 
गढ़ नहीं सकते ह्रदय में 
भाव सुन्दर और खरे । 

स्वाति वल्लभा  राज