Monday 30 July 2012

बेटियाँ (हाइकु)



बेमौत मरी,
दुल्हन बनी बेटी,
अमीर ना थे|


कोख में हत्या
खामोश डरी बेटी
पंगु समाज|


काहें बढे तू
मुकाबला क्यों करे
विकृत सोच|


रोती बिटिया
चुप चाप सहती
सृष्टि आधार|

 

है क्यों अबला
हवस की शिकार
निकृष्ट कर्म|

स्वाति वल्लभा राज

Wednesday 25 July 2012

जज्बों कि चौपड़



भावनाएं नंगी खड़ी दुनियादारी के बाज़ार में,
कभी तो है बोली लगी,कभी नुमाइश इश्तहार में|
नीलामी हुई कहीं समझदारी के नाम पर
कहीं बेचारी लुटी पड़ी बेवफाई के दाम पर|

 

कभी चाँद छूने की होड में खूब नोच-खसोट हुई
कभी जज्ब को चाँद कह,शीतल अर्क की छिनौट हुई|
भाव जो तेरे खरे-खरे तो हर कदम पे इनको वार दो
इसके साथ में तो सब मिले,फिर चाहे इसको हार दो|

 

जिंदगी की चौपड़ में,हर शख्स आज धर्मराज है,
जज्बों की द्रौपदी की बिकती अब भी लाज है|
फिर चाहे इसको छल कहो या मज़बूरी का जामा दो,
महाभारत तो अटल हीं है,चाहे जो हंगामा हो|

स्वाति वल्लभा राज

Tuesday 24 July 2012

क्षमा दान






दुःख मिश्रित विस्मित नयन तेरे,
मुझको क्यों हरसूं रुलाती हैं?
तन्हा पाकर आ जाती क्यों
मुझसे फिर क्यों बतियाती हैं?

मैं भुला तो दूँ अस्तित्व तेरा
उन आँखों को क्यों न भुला पाऊं?
नन्हें पादप से ठूंठ हुई
वो आँखें क्यों अकुलाती हैं?

तू आत्मसात मुझमे नहीं पर
दृष्टि तेरी कहीं जागृत है
सोती रातों में जाग उठूँ
वो ऑंखें क्यों चिल्लाती हैं?

कर जोड़ करूँ यह प्रार्थना
मुझको अब क्षमा दान दे तू
मेरे वजूद पर नयन तेरे 
क्यों प्रश्न चिन्ह उठती है?

स्वाति वल्लभा राज...

--
http://swati-vallabha-raj.blogspot.in/

Tuesday 17 July 2012

तो क्या होगा




तुम भी न समझे तो क्या होगा
तुम फिर न समझे तो क्या होगा?
सिसकती हुई तो बीती थी हीं जिंदगी
इस बात पर कलपे तो क्या होगा?

दर्द आज भी हर हद से पार है
फिर भी जिंदगी का एहसास है|
ये दर्द तुमको पाकर भी जुदाई का,
इस बात से रूठे तो क्या होगा ?
 
मेरे हमदम तुम हीं  तो हो
हर शब हर शाम में लिपटे|
तन्हाइयों की मेरी इस साथिन
आगोश से छूटे तो क्या होगा?

कम कर होती आब-ए-तल्ख़ है
इसके पीछे तू, हमदर्द है|
ये ढका जो तेरे दर्द से तो
पीड़ा ढक कर हीं क्या होगा?

आब-ए-तल्ख़-आँसू

स्वाति वल्लभा राज

जख्म


ख्वाब सजते थे,स्वत्व का एहसास लिए
ज़िन्दगी  का एहसास था मीठे पलों में|
प्रेम की तितली जाने कहाँ गयी
मुझसे हर जज्ब औ हर आस लिए|

आगोश तेरी,मेरा मक्का मदीना
तेरे क़दमों में ही जन्नत थी बसी
चीखते हर अश्क,बेआवाज़ से,
बहार भी लाए पतझड़ महीना|

जम  गए हर लव्ज़ दिल में,
प्यार की  तपिश से जो दूर हुए,
जाऊं कहाँ खुद की लाश लिये
बेमोल ये अनमोल जख्म,बेज़ार तेरी महफ़िल में|

स्वाति वल्लभा राज....

Friday 13 July 2012

हाइकु


 

कज्जल ऑंखें
अलासायें सपनें
उन्मुक्त मन|


सजल आँखे
मुरझायें सपनें
बेबस मन|


हरी चूडियाँ
औ कागज़ के नाव
संतुष्ट मन|


सूखा सावन
नीरस है जीवन
ठूँठ सा मन|

स्वाति वल्लभा राज

Thursday 12 July 2012

पराजिता


भींगी पलकें,
सूखते लब,
गुम हुए शब्द,
धराशायी स्वप्न,
स्तब्ध सोच,
किंकर्तव्य विमूढ़ एहसास;
आज बिल्कुल
मृत हैं|
क्या अब भी कहोगे
तुम कर सकती हो?

स्वाति वल्लभा राज