Wednesday 28 December 2011

रोटियाँ

जलते हुए ख्वाबों के अध-जले
राख बटोरने हम चलें|
प्यार के इस इल्ज़ाम को भी
खुद को सौपने हम चलें|



तिनका-तिनका हो वजूद मेरा
जो बिखरा था  तेरे आशियाने में,
गैरों की महफ़िल में अब
दामन में समेटने हम चलें|



वो राख जिसमे अब भी मौजूद है
हमारे प्रेम की तपिश,
उस तपिश से ता-उम्र
रोटियां सेंकने हम चलें|

वो रोटी तो अध-पकी ही रहेगी अब
पर साँसों के विराम को
इसी से रोकने हम चलें|


वो रोटी जो कभी सिकीं थी नरम
याद तो बहुत आएगी|
पर तेरे नफरत की आग में जले
रोटियों को भूलने हम चलें|


स्वाति वल्लभा राज




Friday 23 December 2011

सब्र का बाँध


टूट गया फिर इक दर्द से ही,
क्या करें सब्र का बाँध ही तो है|
उफन पड़ी फिर अश्रु नदियाँ,
पगली,जिद्दी,नादान हीं तो  है|

प्रहार किये बारम्बार जो
दर्द के कटार ने,
रक्त साखी टपक पड़ा स्वपन
मासूम,कमजोर,अनजान हीं तो है|


रौनक कैसे आएगी मुख पे,
हरियाली कैसे छाएगी?
चहुँ  ओर दर्द का आनन
वो भी बंजर बियाबान हीं  तो है|

जो देखा परिंदों को चुगते.उड़ते हुए,
बेफिक्र हो गगन में विचरते हुए|
और पाँख खोलें स्वयं के तो
पाया वो  मृत.भयावह,श्मशान हीं तो है|


आस लगी दिल में की रोऊँ
पर पीर घनेरी कम लगी|
आज उन्मुक्त बह चले ये
मनः वेग अंधड़ सामान हीं तो है|

दुबोएंगी कितनो को ये
आज इस प्रवाह में
बेपरवाह है तत्काल ये
उलझी,उपेक्षित परेशान हीं तो हैं|

स्वाति वल्लभा राज



Saturday 10 December 2011

मेरी इज्जत

मैं दरियां हूँ  मुझे दायरों  में बहने दो,
ना छेड़ो मुझे किनारों में सिमटने दो|
अस्तित्व में हूँ  मुझे यु ही रहने दो 
बिखर जाउंगी वरना,ऐसे ही चलने दो|




छुआ भी गर मुझे या तो सुख जाउंगी
या फिर उफान में सब कुछ  डुबो जाउंगी|
जलने दो मुझे इस प्यास की आग में
दहक के बुझ कर खाक में मिल जाउंगी|


जलना और बहना   ही मेरी किस्मत है
जल कर भी बहना यही मेरी फितरत है|
क्यों बैठते हो किनारों पर यूँ खामोश
सदियों का इंतज़ार  ही मेरी इज्जत है|



स्वाति वल्लभा राज 

Thursday 8 December 2011

वक़्त की रफ़्तार

बेगुनाह भी मैं,गुनाहगार भी मैं|
विध्वंसकारी,रचनाकार भी मैं|
सारी सृष्टि तन्मय मुझमे,
इस सृष्टि से बेज़ार भी मैं|


हर रूप में मैं,सब रूप मेरा|
साकार हूँ तो निराकार भी मैं|
ब्रह्मनाद ओमकार भी मैं,
नास्तिकों का तिरस्कार भी मैं|


रक्त-पिपासु तलवार भी मैं,
प्यास बुझती धार भी मैं|
आती मृत्यु का सत्कार भी मैं,
वैतरणी की पतवार भी मैं|


जान सको तो जान लो,
मान सको तो मान लो|
कुछ और नहीं कुछ और नहीं,
वक़्त की रफ़्तार हूँ मैं|



स्वाति वल्लभा राज