Sunday 16 September 2012

हो जाऊं बदरंग



हो जाऊं बदरंग,
ऐसा रंग भर दो मुझमें 
खामोश हो जाये ये जुबाँ,
ऐसी कहानी गढ़ दो मुझमें|

हौसलों के हौसले भी टूट कर 
बिखर गए हैं अब तो,
इनके पर क़तर दो
अपर हीं रहे ये मुझमें|

ना कल.ना आज,ना कल फिर,
बाकी रहे कोई,
ऐसी स्याही से लिखे पन्ने
जड़ दो मुझमें|

मरने की ख्वाइश भी 
ना जिए कभी अब,
ऐसी हसरत  भारी,
अभी भर दो मुझमें|

स्वाति वल्लभा राज








Monday 10 September 2012

डर लगता है



शाम के अंधेरों से डर लगता है,
दिन के उजालों में डर  लगता है
ऐ ज़िन्दगी! क्या तू हीं है ये,
तेरे हर इशारों से डर लगता है|

रात की स्याह को  
अजीब  तिश्नगी की प्यास है,
दिन के उजियारे,
आजिज़ आरजुओं की लाश है,

सुलगते  अरमान भी है काफ़िर हुए
ऐ कुदरत! तेरे  काबू की दरकरार है|

दिल की लगी क्या कहें,अब 
दिल्लगी से भी  डर लगता है|
ऐ इश्क!हजारों रंग हों मुबारक चाहे,
खूनी लाल ख्वाइशों  से डर लगता है|

स्वाति वल्लभा राज



Thursday 6 September 2012

नारी



तू कृष्ण की प्रेयषी,
प्रेम और त्याग की अतुलनीय प्रतिमा,
तू राम की अर्धांगिनी,
साथ और पतिव्रतता की आगाध गाथा|

तू वंदनीय,तू अतुलनीय,
ममता,दया,करुना,वात्सल्य,की एकमेव प्रतिमा
तू अकथ,अथक सृष्टि है
जन्म ,पालन-पोषण की अविस्मरनीय गाथा|

जगत के आदि से अंत तक,
तेरी कीर्ति अनवरत चलती रहेगी,
ब्रम्हाण के हर काल में,
तेरी कृति हरसूं पलती रहेगी|

तू कोमलांगी पर सशक्त है
तू परदे में पर मुक्त है
हर श्वांस में तू लीन है
परमात्मा में विलीन है|

मीरा की प्रेम सी बावली,
दुर्गा रूप में तू तारिणी,
यशोदा  माँ सी निर्झरणी
काली रूप में मुंड धारणी|

चंचला-चपला तेरा स्वरुप है,
जाड़े की सर्द की तू धूप है,
तू अटल,अडिग,आरोह रूप,
नदी सी विस्तृत,नहीं है कूप|

नव युग की पहचान तू,
चहुँ और विख्यात ज्ञान तू,
नयी सोच,खोज का सम्मान तू
कला,संस्कृति और विज्ञान तू...

स्वाति वल्लभा राज

Tuesday 4 September 2012

हाइकु



हर  तरफ
मद की आगजनी
भय लगाए|


हर जगह
लोभ की अठखेली
है भरमाए|


तिरष्कृत है
ईमान की लड़ाई
कौन,क्यों आए?
 
सफाई हेतु
राजनीती में आए
ना घबराएं|

स्वाति वल्लभा राज