Saturday 31 March 2012

क्यों क्यों क्यों?



आशुफ़्ता क्यों हर बात पर,
आईना शर्मशार  क्यों?
आब-ए-चश्म में डूबी आँखें
आजिज,आसिम रूह क्यों?


आराईश  की नुमाइश क्यों
आहिस्ता सुलगती आदमियत क्यों?
आसिम अपरिचित इंसान क्यों
अख्ज़ आज़ शख्शियत क्यों?

 

हैवानियत का उच्च आलाप क्यों
बेजान रुखसत आन क्यों?
जिंदगी  की बस्ती में
खामोश मुर्द श्मशान क्यों?

swati vallabha raj 

Thursday 22 March 2012

डर



मन उद्विग्न,तिस पर कुत्तें भी हैं रो रहे| 
कौन सा सुकून दूँ,ऐ मन तुझे जो खो रहे|

सोचा उठ रही हूँ ऊपर अपने हरेक दर्द से|
कैसे उमड़ी अश्रु नदियाँ;बंदिनी,वशित फिर मर्म से|

 

कतरा आँसू का हर,अमिट छाप मन पर छोड़ता|
चेहरा तो धो लूँ मगर ये दाग दिल पर कुरेदता|
 
जाने क्या विपदा झेले अब ये मन और ये आत्मा|
डर के साये में सिसकती,पलती,जियेगी मनोकामना|

swati vallabha raj



Tuesday 20 March 2012

तृतीय प्रकृति


 
अर्धनारीश्वर रूप कभी,
पूजित हुआ संसार में|
१४ वर्ष अवध सीमा पे
खड़े,राम इंतज़ार में|

 

पैदाइश पे रोष कलह
उपेक्षित मैं निंदनीय,कृति|
साँसों की जंजीर क्यों?
अवांछनीय मैं तृतीय प्रकृति|

 

मारना हीं जुर्म क्यों?
पैदा करना क्यों नहीं|
पैदाइश दुत्कार,अफ़सोस
तो क्या ये गुनाह नहीं|

 स्वाति वल्लभा राज

Tuesday 13 March 2012

have a look...

हमारे समाज में अभी भी ऐसी कुरीतियाँ मुहं बाएं खड़ी हैं जो मानव जीवन को मृत्यु तुल्य कष्ट देतीं हैं।ऐसी ही एक कुरीति है मृत्यु-भोज।आर्थिक एवं  मानसिक स्थिति चाहे जैसी भी हो,अगर एक भव्य भोज आयोजन ना किया जाये तो परिवार को सामाजिक तिरष्कार और बहिष्कार  का सामना करना पड़ता है।कारण बताया जाता है कि मरने वाले कि आत्मा को शांति नहीं मिलती।यह भोज कितना उचित है ,इसका फैसला आप करें।
http://swati-vallabha-raj.blogspot.in/2012/03/blog-post.html 

Friday 2 March 2012

भ्रूण हत्या




नन्हीं कली,कोख में पली,
अंकुरण जीवन बीज का|
३ माह मातृत्व-सुख,फिर;
क्षरण “मात्र चीज” का 

                                          

                                                                       
                                                                      “प्रेम-प्रस्फुटिकरण” आवश्यकता थी,
                                                                       जीवन-चक्र बढाने को|
                                                                       थामी गयी चक्र की गति,
                                                                       तनया ना जायने को|


“आवश्यकता आविष्कार की जननी है”
तो फिर कैसा ये आविष्कार?
परा-ध्वनि तरंगे बनी विधाता,
भ्रूण हत्या का क्यों ना प्रतिकार?


स्वाति वल्लभा राज