Saturday 19 January 2013

पुरुषार्थ




जिस्म को नोचा,रूह खसोटी
तब भी चैन नहीं आया |
पुरुषार्थ साबित करने का
राह ना दूजा तुम्हे भाया ?

संयम,हया क्यों मेरा गहना
जो तुम्हें नहीं उसका सम्मान,
कामुक तुम अमर्यादित
हमे क्यों देते फिर हो ज्ञान?

दूध ने सींचा जिन पौधों को
सृष्टि को हीं लील रहे,
जीवन दायिनी उस अबला का
स्वत्व हंसुवे से छील रहे|

लाज नहीं तुमको हे निर्लज्ज
दुष्कर्मों की लाज बचाते,
अट्टहास लगाते ऊपर से
हमें चले सहुर सिखाने |

 गिध्ह भी नोचते हैं मुर्दे को
अपने भूख की शांति को|
तुम्हे कौन सी भूख बिलखाती
जो तारते धर्म की कांति को |

याद रखो हम अबला तब तक
जब तक क्षमा का गहना लादे,
जिस पल गहना फेंक दिया
हो जाएँगे चंडी माते |

तीनों लोक पड़ेंगे फिर कम
खुद का मुँह छिपाने को|
तब देखेंगे पुरषार्थ का दम
नारी को नीच जताने को |

स्वाति वल्लभा राज

Thursday 17 January 2013

परिवार




कई दिनों से एक घटना आँखों के सामने बार-बार आ रही है |दर-असल मेरे हॉस्टल से मार्केट जाने के रास्ते में कुत्ते के छोटे-छोटे बच्चे हमेशा खेलते दिख जा रहे हैं |कभी एक दूसरे पे सोये हुए,कभी लड़ते हुए तो कभी आते जाते लोगों के पीछे भागते |कभी-कभी वो सपरिवार दीखते थे |कुत्ता,कुतिया ,और उनके ६ बच्चे |एक हँसता खेलता परिवार |परसों जब मैं जा रही थी तो कुछ कौवे एक पिल्ले की पूंछ खीच रहे थे |वो बेचारा इधर उधर भाग रहा था |इससे पहले की मैं कुछ करती,बाकी के उसके भाई बहन कौवों को भगाने लगे |देख कर अजीब सी खुशी भी हुई और थोड़ी निराशा भी हुई |आज शाम में उसकी माँ उन्हें दूध पीला रही थी और कुत्ता,कौवों को भगा रहा था |मन को फिर अच्छा लगा और हताशा ने भी घेरा|

वहीँ  दूसरी  ओर मेरे हॉस्टल में खुद एक कुतिया ने बच्चे जने थे जब हमारे पेपर चल रहे थे |इक्जाम के बावजूद कई लड़कियां उन पर अच्छा-खासा ध्यान दे रही थी |उनके खाने पीने  का  पूरा ध्यान रखते थे | कुछ ने कपडे के कुछ  टुकड़े भी रख दिये  थे |उन पिल्लों की माँ के लिये हर शाम कोई ना कोई दूध भी ले आता था |फिर हमारी छुट्टियाँ हो गयी |जाने से पहले सब परेशां थे कि अब वो कैसे रहेंगे |मगर हॉस्टल के भैया जी ने  जिम्मेदारी ली |जब हम वापस आए तो ५ पिल्लों में से सिर्फ २ बचे थे |उनकी हालत भी अच्छी नहीं थी |भैयाजी से पूछा तो उन्होंने कहा ठंड की वजह से वो मर गए |जहां तक मैं भैया जी को जानती हूँ उन्होंने ख्याल रखा होगा उनका |मगर शायद  नियति |परसों हीं कुछ लड़कियों ने ध्यान दिया की दोनों पिल्लों और उनकी माँ को खुजली हो गयी |उनके बाल झड़ने लगे थे |वार्डन को बताए जाने पर उन्होंने एहतियात के तौर पर उन्हें हॉस्टल के बाहर कर दिया ताकि लड़कियों को बिमारी ना लग जाये |आज सुबह मैंने उनको हॉस्टल के बाहर हीं किकुडे देखा |बहुत ढूंढने पर भी मुझे सिर्फ एक हीं पिल्ला दिखा |शायद एक मर गया है |वो कुं-कुं करके रो रहे थे |मुझसे देखा नहीं गया |ब्रेड के कुछ टुकड़े डाल कर मैं चली आई मगर मन अशांत हीं रहा |शाम में वो भी नहीं दिखें |

दोनों घटनाओं ने मुझे काफी कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया था |एक का परिवार जो हमारे इतने निगरानी में था.ठंड से बचाने के सारे उपाय किये गए थे |उनकी भूख-प्यास,जरूरतें सभी ध्यान में रखी गयी गयी थी |फिर भी वो सरवाइव नहीं कर पायें| क्यों?दूसरी ओर दूसरे कुत्तों का परिवार जो पूरी सर्दी बाहर हीं रहे,पता नहीं कहाँ से खाया-पीया,रात में ठंड से कैसे बचे,फिर  भी वो बच गए|और ना सिर्फ बचे,बल्कि मजे में दीखते है|बच्चे भी काफी हृष्ट -पुष्ट हैं |क्यों?

एक परिवार ने अपना अस्तित्व खो दिया |शायद इसलिए क्योंकि परिवार का मुखिया कभी उनके साथ नहीं दिखा,माँ ने बहुत कोशिश की थी मगर इतने ख़याल के बावजूद भी वो ना बचा पाई|वो बिखर गए क्योंकि वो कभी मुझे एक-दूसरे की मदद करते नहीं दिखें|हालांकि लोगों ने हीं काफी ध्यान रखा और शायद इसलिए उन्हें एक -दूसरे के ध्यान रखने का मौका हीं नहीं मिला |वहीँ  दूसरे  परिवार ने विषम परिस्थितियों में भी एक-दूसरे का साथ दिया |परिवार का मुखिया हर समय साथ खड़ा दिखा |  तो क्या आपसी प्यार दुलार,स्नेह,की वजह से हीं वो बच गए |परिवार की एकता उन्हें बचा ले गयी और दूसरी ओर दुसरा  परिवार सही मार्ग-दर्शन,नेतृत्व  और रख-रखाव के अभाव में अपना अस्तित्व  खो बैठा ?

ये सारे  प्रश्न मन में पता नहीं कब तक उथल-पुथल मचाते रहेंगे क्योंकि आज हम भी उस  कुत्ते  के परिवार वाली जिंदगी जी रहे है जहाँ हम परिवार के मुखिया की अगुवाई स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं|सुख-सुविधाओं में पल-बढ़ तो रहे हैं  पर एक दूसरे का ख्याल नहीं रख रहे  हैं | एक-दूसरे के लिये खड़े नहीं हैं |पता नहीं कब तक इन हालात में अपना अस्तित्व बचा पाएँगे या एक दिन यूँ हीं गुम हो जायेंगे |

स्वाति वल्लभा राज 

Thursday 10 January 2013

राधा -कृष्ण




जब कभी भी प्रेम पर चर्चा हो रही हो तो मानस पटल पर सबसे पहले कृष्ण-राधा की युगल  छवि अंकित होती है । हमारे संस्कारों में,पूजापाठ में ,ध्यान में,प्रेरणा में, सर्वत्र उनका प्रेम विद्यमान है । जहां कहीं भी पूर्ण आस्था और विश्वास है,वहाँ राधा हैं और जहां कहीं भी उस विश्वास की लाज रखी जाये ,वहाँ श्री कृष्ण हैं|यह समझना  काफी मुश्किल है कि उनका प्रेम परकाष्ठा पर था या एक-दूसरे के प्रति समर्पित भाव की हीं परकाष्ठा उनका प्रेम |राधा-कृष्ण के सम्बन्ध पर कई विचार-धाराएं हैं|कुछ का मानना है उनका विवाह हुआ था |दोनों के सम्बन्ध दो तरह से वर्णित हैं-स्वकीय रास और परकीय रास|स्वकीय उनके शादी शुदा सम्बन्ध का वर्णन करते हैं जबकि परकीय अलौकिक परम  सम्बन्ध को|गर्ग संहिता के अनुसार राधा-कृष्ण का विवाह स्वयं ब्रम्हा जी ने संपन्न कराया था |कान्हा उस समय महज दो वर्ष सात माह के थे तब नन्द बाबा उनके साथ खेलते-खेलते भांडीर वन पहुँच गए|अचानक तेज आंधी-तूफ़ान उठ गया और हर तरफ घुप्प अँधेरा छा गया |तभी राधा रानी प्रकट हुई |नन्द बाबा  कान्हा को उनकी गोद में देकर चले गए|तब श्रीकृष्ण किशोरावस्था में गए|श्रीकृष्ण को इस रूप में राधा रानी के साथ देख कर ब्रम्हाजी प्रकट होते हैं और उन दोनों के युगल छवि की स्तुति करने लगते हैं|श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न होते हैं तब ब्रह्मा जी उन्हें याद दिलाते हैं कि ६० हज़ार वर्षों तक उन्होंने इसी युगल छवि के दर्शन  हेतु तप किये हैं |और उन दोनों का विवाह कराने की इच्छा व्यक्त करते हैं |दोनों की सहमति से स्वयं ब्रम्हा जी उन दोनों का विवाह संपन्न कराते हैं |शादी के बाद कई दिनों तक राधा कृष्ण वन में विहार करते हैं और रास रचाते हैं |फिर जब श्री कृष्ण को नन्द बाबा की याद आती है तो वे वापस बाल्यावस्था में जाते हैं |राधा रोने लगती हैं फिर आकाश वाणी द्वारा उनके अवतार का कारण याद दिलाने पर कान्हा को वापस नन्द बाबा के पास छोड़ देती हैं |

जिस प्रकार शिव की शक्ति पार्वती हैं उसी प्रकार श्री कृष्ण की शक्ति राधा हैं |राधिका को आदि शक्ति का अंश मानते हैं |श्री कृष्ण और राधा साथ मिलकर पूर्ण सत्य बनते हैं |महाभारत और भगवत पुराण में कहीं पर भी ''राधा'' नाम का जीक्र नहीं है|सिर्फ यह वर्णन मिलता है कि श्रीकृष्ण गोपियों में किसी एक के काफी नजदीक थे |निम्बार्क सम्प्रदाय और गौडीय वैष्णव पंथ के अनुसार राधा कृष्ण का सम्बन्ध पारकीय है|इसी वजह से उनके संबंधों का ज्यादा वर्णन पुरणों में नहीं मिलता |श्रीकृष्ण, मधबन में गोपियों के निः स्वार्थ प्रेम के प्रति विशेष अनुराग रखते थें| उन गोपियों में राधा रानी सर्व प्रमुख थीं |
राधा को कृष्ण की सहचारिणी,प्रेरणा और शक्ति के रूप में देखा गया है|उनका प्रेम दिव्य है जो किसी भी सम्बन्ध से ऊपर है और किसी भी दैहिक रिश्ते से परे |श्रीकृष्ण और राधा एक हीं सिक्के के दो पहलु हैं|एक-दूसरे के बिना अपूर्ण और अस्तित्व हीन|श्री कृष्ण की परालौकीक अंतहीन भक्ति को पाना असाध्य है परन्तु उस भक्ति मार्ग को सहज  मोड़कर श्रीकृष्ण को पाने की धारा है -राधा| प्रेम के विशुद्ध प्रतिरूप हैं राधा-कृष्ण |निः संदेह इनका प्रेम किसी भी सम्बन्ध से ऊपर है |प्रेम और भक्ति में समर्पण,त्याग,साथ और की जाग्रत रूप हैं राधा-कृष्ण|दो आत्माओं का मिलन हैं राधा-कृष्ण|जीवन-मरण के चक्रव्यूह और  जड़-चेतन की गति से से मुक्त हैं राधा-कृष्ण| उस आनंदमयी शक्ति.भक्ति,प्रेम,बलिदान के रूप को नमन |

स्वाति वल्लभा राज