Thursday 29 September 2016

फेमिनिस्ट मादा मच्छर

मच्छर भगाने के उपाय के लिए चित्र परिणाम

सदियों से पुरुषों को लगता है कि पत्नियाँ  उनका खून पीती हैं और बेचारा पुरुष समाज लाचार बेबस है!
नारी के लिए इस अशोभनीय और अमर्यादित भाषा पर मैंने अक्सर शर्माजी को यहाँ - वहाँ भिड़ते देखा है । छायावाद में भी इसका अर्थ ,शाब्दिक अर्थ की भयावहता से कम खतरनाक नहीं है ।
जबसे दिल्ली में मलेरिया , डेंगू और चिकन गुनिया का प्रकोप बढ़ा है तब से शर्माजी इस सत्यता के स्थापन में जुड़ गए हैं ।
’’इंसानों में क्या मच्छरों में भी मादाएँ ही खून पीती नज़र  आ रही हैं । बेचारे पुरुष मच्छर पुष्प अर्क  का पान करते हैं और महिला मच्छर स्वभावानुसार रक्त पान करती हैं’’
दांत निपोरते शर्माजी ने तो तुलनात्मक अध्ययन पर नया अध्याय ही लिख दिया ।
‘’चाहे जो जुगत बिठा लो स्त्री -हठ शास्त्र -प्रसिद्ध है  । फिर भला महिला मच्छर क्यों पीछे हो !विज्ञापन में लम्बी जीभ निकाल कर लपक लपक कर मच्छर खाती मशीन भी इनकी ढिठाई के आगे दम तोड़ रही है ‘’

शर्मा -उवाच और मच्छर पुराण यही बंद नहीं हुआ ।  भावावेश में बेचारे पेट की बात भी कह गए ।
‘’आदि काल से स्त्री झगड़े की वजह रही है । अब देख लीजिये ये मादा मच्छर भी दो पूर्ण बहुमत से चुनी हुयी सरकारों के बीच  की खाई को और बढ़ा  रही है । मच्छर ने जो रायता फैलाया उसकी जिम्मेदारी कोई नहीं ले रहा मगर तू -तू ,मैं -मैं  खूब मची है ।

शर्माजी बात बात में पते की बात कह गए । वास्तव में मादा मच्छर ने क्या कोहराम मचा  रखा है । इतना डराया कि साहब लोग तक भाग खड़े हुए । झगड़ा और डर दोनों की वजहें यही तो हैं ।
बेचारे नासमझ और समझदार सब  इन मादाओं के मोहपाश में हैं । क्या द्वापर का हस्तिनापुर और क्या कलियुग की दिल्ली ! रक्त -चूषक मादाएं आदमी तो आदमी प्रशासन तक का खून  चूसती आयी हैं ।

शर्माजी का तो पता नहीं मगर दिल्ली मादा -मच्छर और मत्सर के मृग-मरीचिका में जरूर फंस गयी है । जिन्हें मरना नहीं चाहिए अब तो वो भी श्रीमती मच्छर के दंस से मरणासन्न हो रहे । दिल वालों की दिल्ली आज  मच्छरों की होकर रह गयी है ।

स्वाति