Tuesday 18 June 2013

ठूँठ



दिखने को हरा -भरा मन
अंदर से ठूँठ है|
एहसासों कीं हो रही बिक्री
हर किरदार यहाँ झूठ है|

यकीं आया था कल
जिन आँखों के प्यार पर|
समझ आया आज वहाँ
हवस और लूट है |

क्या करे कोई शिकवा और
गिला उस खुदाई से|
ना जाने  किस तले
वो खामोश और मूठ है |

स्वाति वल्लभा राज

Monday 10 June 2013

रिश्ते



विश्वास,प्रेम,सहयोग पर
हर पल एक आघात है |
छल,बल और झपट की
चहुँ ओर झंझावात है|

मन शांत,विस्मित है ठगा सा
हर आस पर कुठाराघात है|
उम्मीद की हर एक किरण पर
लालच का वज्राघात है |

जिन रिश्तों को हम सींच कर
स्वपन मे हीं थे आकंठ निमग्न,
चतुरायी,स्वार्थ के फलों से
ना जने कैसे हुए आच्छन |


मद,लोभ में डूबे ये रिश्ते
क्या कभी उबर पाएंगे
या यूँ हीं स्वार्थ में डूबे
हमको डूबा दे जाएँगे|

स्वाति वल्लभा राज