Monday 30 January 2012

शत्-शत् नमन


शहीदों की चिताओं पे
लगेंगे हर बरस मेले|
वतन पे मरने वालों का
यही बाकि निशां होगा|.......शत्-शत् नमन समस्त शहीदों को...


ना जग प्यारा ना कहानी प्यारी,
प्यारी थी जिन्हें सिर्फ आज़ादी|
पराधीन देखते जब तुझको माँ,
आँख जिनकी भर आती|

तुर्क,मुगलक,डच,अंग्रेज,
ना जाने कितने और आतितायी|
रौंदे माँ तुझको निश-दिन,पल-पल
दौलत ही जिन्हें थी बहलाती|

बसंती रंग मे रंग गए दीवाने,
प्राणों की दी होम-आहुति|
नमन उन शहीदों को जिनके
रक्त से मिली ये आज़ादी|

स्वाति वल्लभा राज



Saturday 28 January 2012

माँ सरस्वती शारदा



मन-मस्तिष्क के घोर तम को दूर कर
मानवता की शीतल शिशिर बन जाऊं|
लोभ,माया,द्वेष,विलासिता का दमन कर
स्थिर,प्रज्ञ,अडिग शिखर बन जाऊं|

हे शुभ्रा! मुझ अज्ञानी पर वरद-हस्त रख दे|
पावन ज्ञान-गंगा की निर्मल कुछ बूंद दे दें|
मनसा,वचसा,कर्मसा शुद्ध भाव पिरू हरसू ,
ऐसे मनकों की सुन्दर लड़ी बन जाऊं|

हे ज्ञान-दायिनी ये वर दे,
नभ की देद्विप्यामन नक्षत्र बनू मैं|
समस्त भू को आभा-मंडित करूँ
यूँ दीप्तिमान ज्योति सर्वत्र बनू मैं|

swati vallabha raj

Thursday 26 January 2012

जय हिंद !


है प्रजातंत्र पर भाव कहाँ
है लोकतंत्र पर नीव कहाँ
आज़ाद तो हैं हम वाकई मे
पर आज़ादी का मोल कहाँ?
फहरा रहे हैं तिरंगा आज,
वीरों को याद भी कर रहे
झांकियां मनोहर सजी हुई
मूक दर्शक बने जिसे देख रहे|
देखा लाल किले को जो
मन भावनाओं से भर उठा|
साक्षी बना था जो कभी
निज गौरव और अभिमान का
आज देख रहा है हतप्रभ
मनोरंजन, राष्ट्रीय अवकाश का|
क्या जिम्मेदारियां पूरी हो गई
क्या गणतंत्र दिवस सार्थक रहा?
गुजरी पीढ़ी, न कल की पीढ़ी
ये प्रश्न है हमारे आज का|

स्वाति वल्लभा राज



Tuesday 24 January 2012

एक सवाल


खून किया मेरे अरमानो का और यूँ ही सिसकता छोड़ दिया,
कसूर क्या इतना था मेरा कि अंगारों पे दहकता छोड़ दिया|
लाज ली जिस सिंदूर की और हाथों से दामन चीर दिया,
मेरी  कहानी के अर्थ को , मंजिल से अचानक मोड़ दिया |

साथ दिया बाबुल तूने भी,दर-दर भटकी थी तन्हा जब मैं,
क्षुधा की थप्पड़ सहती , सिसकी रात-रात भर थी तब  मैं|
भूखे जल्लादों का ये समाज ,था आतुर  जब चीरने  को,
ना आया तू  भी जब तिल-तिल कर, पल-पल मरी थी ऐसे मैं|

फिर आया वसंत  तू जीवन में मेरे 
कोमल एहसास बन कर एक दिन,
पर  घिरा तू भी मजबूरियों और 
जिम्मेदारियों के चक्रव्यूह में।

तड़प रही  तेरी रूह भी है जब 
आज  हूँ मृत्यु  शय्या पर मैं।

थकी हुई आत्मा को है एक सवाल कचोटती, 
वो  जिसने मेरी मांग भरी या  जिसने मुझको जन्म दिया,
या वो फिर जिसने नयी जिंदगी दी,
कौन करेगा मेरी अंत्येष्टि,कौन देगा मुखाग्नि?
क्या यूँ ही फिर शिकार हो जाउंगी
समाज के कई सोच और दायरों का।

स्वाति वल्लभा राज





Saturday 14 January 2012

उनकी शिकायत

उन्हें शिकायत थी की हमने उन्हें पल्लू से बांध लिया,
बात यूँ उतर गयी दिल में की हमने दामन जला दिया|
वो पूछते  रहे क्या पाया पिछले बरस उन्होंने था?
हम सोचते रहे की हमने तो पाया ही उस बरस था|

वो कहने लगे जिंदगी ये नहीं
कि सिमट जाये हम एक रिश्ते में ,
मुस्कुराये हम कि साँसे तो अब   
जिंदा हैं उस एक फ़रिश्ते में|

उनकी शिकायत कि हम बदल गए वक़्त के अंदाज़ पर,
हमने पाया हम बदले, या लुट गए इश्क के इल्ज़ाम पर|
वो कहने लगे नामालूम उन्हें  अभी कई राज़ हैं,
हम सोचते रहे जिंदगी मेरी तो कब की पर्दाफास है|

स्वाति वल्लभा राज 


Friday 6 January 2012

प्रार्थना

भगवान जी ! मेरे पापाजी को जल्दी से ठीक कर दो | वो जल्दी से घर आ जाये | आप सभी प्रार्थना करें की वो जल्दी से ठीक हो कर घर आ जाएँ |




ईक्षा, ईहा, डाह, लिप्सा,
क्या ये नरक के द्वार हैं?
अनुभूतियों अनुभवों के
उठते सैकड़ों ज्वार हैं|


नाच रही है सोच मेरी,
अनगिनत धुरियों के इर्द-गिर्द,
पर क्या करूँ जो समझ है
एक ही पिंड को सुपुर्द|


देखती हूँ जीवन को रोज
दो-दो हाथ करते परम शाश्वत सत्य से,
सच  है तो कटु होगा ही,
निः-शब्द हूँ अपेक्षित, असमय  इस कृत्य से|


हे ईश! अवगत  हूँ मैं
तेरे सृष्टि की नियमावली से,
पर एक विनम्र  विनती है 
दर्द-प्रार्थना मिश्रित अरावली से|

दूर रख इस सत्य से अभी 
कुछ बीस-तीस साल मुझे,
जीना,अधिकार उन आँखों का है
जिसने सींचा हर काल मुझे|


पी ले वह जीवन भी 
वास्तविक जीवन का रस 
सच-झूठ के पेशों-पश से परे,
सपनों के हकीक़त का यश|




ॐ साईं राम 



स्वाति वल्लभा राज