Friday 13 October 2017

मॉस वॉल और ''स्मॉग फ्री टॉवर''की दरकार



                         


स्वच्छ हवा प्राण वायु है| अगर यह मिलावटी है तो निःसंदेह स्वास्थ्य और प्राण दोनों खतरे में है| कुछ दशकों से वायु प्रदूषण पूरे विश्व में अलार्मिंग स्तिथि की आहट दे रहा है|
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एनसीआर क्षेत्र में 1 नवम्बर तक पटाखों पर बैन के आदेश ने कई नये अटकलों को जन्म दे दिया है| कुछ लोग इसे हिन्दू धर्म की आस्थाओं और पर्वों पर कुठाराघात की तरह भी देख रहे हैं| कई लोगों का मानना है कि यह निर्णय स्वागत योग्य तो है परन्तु इसे 1 जनवरी तक बैन करना चाहिए| क्रिसमस और नये साल के समय भी खूब पटाखे फोड़े जाते हैंमगर इस आदेश के बहाने ही हमें संयमित और शांत दिमाग से सोचना होगा कि इस आदेश की नौबत आई क्यों और क्या सिर्फ दिवाली पर बैन से हम इस विकराल समस्या से निजात पा लेंगे?
सच्चाई यही है कि प्रदूषण की समस्या विश्व स्तरीय समस्याओं में से एक है| यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिल्ली विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में 11 वें नंबर पर है| यह भी उतना ही भयानक सच है कि दिवाली पर पटाखों का बैन दिल्ली को राहत की सांस नहीं दे सकता| मगर इस निर्णय से हम दिवाली के बाद अचानक बढ़े वायु प्रदूषण के स्तर पर लगाम लगने की अपेक्षा जरूर कर सकते हैं|
गत  वर्ष  दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण विभाग की ओर से जारी आंकड़े के मुताबिक दिवाली की रात दिल्ली में प्रदूषण सामान्य की अपेक्षा 23 गुना बढ़ गया था टाइम्‍स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, शहर के कई जगहों पर पीएम 10 का स्‍तर 1,000 माइक्रोग्राम/क्‍यूबिक मीटर को पार कर गया था। पीएम 2.5 का स्तर भी गत तीन वर्षों में सबसे ज्यादा था ।
अस्‍थमा, ब्रोंकाइटिस के लिए काफी घातक  माना  जाने वाला सल्‍फर डाय-ऑक्‍साइड और नाइट्रोजन गैस का स्तर  भी कई गुना बढ़ जाता है। रिपोर्ट के अनुसार सामान्य दिनों में सल्फर गैस सतन 10.6 और नाइट्रोजन 9.31 माइक्रो मिली ग्राम प्रति घन मीटर हवा में मौजूद रहती है, जिसका मानव शरीर पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता, परंतु दिवाली की रात सल्फर गैस 21.79 और नाइट्रोजन गैस 25.91 माइक्रो मिलीग्राम प्रति घन मीटर दर्ज की गई। बारूद में स्थित चारकोल भी सांस की बिमारी को बढ़ावा देता है। नाइट्रेट कैंसर जैसी बीमारियां, हाइड्रोजन सल्फाइड मस्तिष्क व दिल को नुकसान व बेरियम आक्साइड आंखों व त्वचा को नुकसान पहुंचाती है। क्रोमियम गैस सांस की नली में व त्वचा में परेशानी पैदा करती है तथा जीव जंतुओं को नुकसान करती है।कार्बन डाई ऑक्साइड ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार हैं जिसका उत्सर्जन काफी मात्रा में होता है। 
वायु प्रदूषण के उपायों के मामलों में हमें यूरोपीय देशों से सीखने की जरुरत है| अधिकांश समय ठण्ड के मौसम में डूबे ये देश कैसे अचानक बढ़े वायु प्रदूषण और स्मॉग की स्तिथि पर नियंत्रण करते हैं| साथ ही साथ निजी जीवन में व्यक्तिगत तौर पर भी छोटे-छोटे कदम लेकर ये पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण की कोशिश करते हैं|
''सिटी ट्री'' नाम से मॉस की दीवारें बनायी जाती हैं| मॉस से ढंकी ये दीवारें कार्बन डाई ऑक्साइड,
नाइट्रोजन ऑक्साइड और हवा से कण पदार्थ को हटाते ही हैं साथ में ऑक्सीजन भी देते हैं| ऐसा एक वृक्ष एक दिन में 250 ग्राम कणों को अवशोषित करने में सक्षम होता है और प्रत्येक वर्ष 240 मीट्रिक टन कार्बन डाई ऑक्साइड को हटाता है जो लगभग 275 पेड़ों के वायु शुद्धिकरण प्रभाव के बराबर स्तर का है| यह कमाल मात्र 13 फीट लम्बे मॉस की दिवार का है जो सार्वजनिक स्थानों पर बड़े आराम से स्टील के बेस के साथ लगया जाता है| अलग अलग जगहों पर इसकी लम्बाई और ऊंचाई अलग अलग भी है| एक मॉस दिवार की कीमत लगभग 25,000 डॉलर है जो ऐसे किसी भी आपात काल से निपटने के लिए बहुत महँगी नहीं हैजब दिवाली या अन्य किसी समय जानलेवा प्रदूषण की जकड़ में दिल्ली या बाकी शहर हो तो यह उपाय पहले से की गयी तैयारियों में सरकारों द्वारा शामिल किया जा सकता है|
इसके अलावा इन देशों में बड़े-बड़े एयर फिल्टर्स सार्वजनिक जगहों पर लगाये जाते हैं| इन्हें ''स्मॉग फ्री टॉवर'' कहते हैं| यह एक विशाल वैक्यूम क्लीनर के रूप में काम करता है| ये प्रति घंटे 30,000 घन मीटर हवा साफ़ करते हैं और पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसी हानिकारक कणों को 75% तक साफ़ करके हवा को शुद्ध करते हैं| चीन में ऐसा फ़िल्टर ना सिर्फ प्रदूषण कम कर रहा है बल्कि इन पार्टिकल्स को 1000 गहन मीटर के प्रदूषित वायु को कम्प्रेस करके गहने भी बना रहा है जिसे पर्यटक बड़े चाव से खरीद रहे हैं| भारत में भी इन मामलों में बहुतेरे उपाय व्यक्तिगत स्तर से लेकर सरकारी स्तर पर करने की जरुरत है| डीज़ल गाड़ियों पर प्रतिबन्ध, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर रोक, मानक स्तर से ज्यादा धुएं छोड़ती गाड़ियों पर कठोर कानून ऐसे ही कुछ उपाय हैं| व्यक्तिगत स्तर पर सार्वजनिक परिवहन के साधनों का उपयोग, वृक्षारोपण, एसी, फ्रिज का आवश्यकतानुसार न्यूनतम प्रयोग, खुले में कूड़ा नहीं जलाना आदि उपाय हैं
दिवाली ठंढ के मौसम में आता है। इस दौरान कई बार धुंध भी पड़ती है। पटाखों का धुआं इससे नीचे ही रह जाता है। इस धुएं व धुंध मे मिश्रण के कारण कई बीमारियां पैदा होती हैं। प्रदूषण से सांस फूलना, घबराहट, खांसी, हृदय व फेफड़े संबंधी दिक्कतें, आंखों में जलन, दमा का दौरा, रक्त चाप, गले में संक्रमण हो जाता है। पटाखों के तेज़ आवाज से कान का पर्दा फटने व दिल का दौरा पड़ने की भी संभावना बनी रहती है। हम सबको पता है वायु प्रदूषण खराब स्वास्थ्य का कारक तो है मगर इसके भयावह स्तिथि को स्पष्ट रूप से बताने के लिए नायब तरीका निकला गया है- एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स! अगर भारत सिर्फ 2.5 पीएम के डब्लूएचओ के मानक (माइक्रोग्राम/क्‍यूबिक मीटर) पर आ जाता है तो भारतियों की औसत आयु 4 वर्ष बढ़ जाएगी| खतरनाक वायु प्रदूषण के स्तर की वजह से एनसीआर क्षेत्र के लोग अपनी औसत आयु से 6 साल गंवा रहे हैं|
''हिन्दू'' में छपे रिपोर्ट के अनुसार अगर एनसीआर में डब्लूएचओ मानकों को पूरा किया गया, तो लोग 9 साल अधिक जियेंगे| हमें अपनी जिम्मेदारी समझने की जरुरत है वरना भावी पीढ़ी को भी मुसीबतों का पहाड़ धरोहर के रूप में दे जायेंगे|

स्वाति