Wednesday 12 October 2016

कोख में देवी की बलि !

      

आधुनिकता और पाश्चात्य सभ्यता के अंधाधुंध आपा -धापी में आज भी कई भारतीय पर्व और रीती-रिवाज़ हैं जो हमें अपने मूल और संस्कृति से  जोड़ें हुए हैं। फ़िलहाल नवरात्रि की पूजा प्रारम्भ है और हर तरफ भक्ति की धूनी रमी है । गरबा , डांडिया , जगराता , भजन -कीर्तन में सब डूबे हैं । देवी के नौवों रूप की पूजा - अर्चना हो रही है । सोशल मिडिया पर भी शक्ति की उपासना में सन्देश , चित्र , मन्त्र खूब आदान - प्रदान हो रहे हैं ।
व्रत - उपासना से सब माता रानी को प्रसन्न करने में लगे हैं ।

व्यस्तता और मानसिक रेस के आज के  इस माहौल में ये व्रत नयी ऊर्जा भी देते हैं और शांति भी । हमें अपनी सभ्यता से जुड़ाव का अनुभव होता है । परंतु क्या हमने  सही मायनों में देवी की पूजा का अर्थ समझ लिया  है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि सभ्यता -संस्कृति को हमने सिर्फ पर्व और प्रतीकों के रूप में अपनाया है और इसके वास्तविक गूढ़ अर्थ और मायनों से अभी भी कोसों दूर हैं हम ।

नवरात्रि में देवी के विभिन्न  सौम्य और रौद्र रूपों की नौ दिन पूजा करते हुए हम नवे दिन कंजक खिलाएंगे । ये बच्चियाँ नव दुर्गा रूप मानी जाती हैं । हर साल की तरह इस साल भी श्रद्धा पूर्वक इनकी पूजा - आराधना की जाएगी , पैर धोये जाएंगे और इनके कृपा और आशीर्वाद की कामना की जाएगी ।

क्या ऐसा करने मात्र से हमने सही अर्थों में साधना कर ली ? बच्चियों के लिए ऐसी श्रद्धा हमें नवरात्रो में ही क्यों सूझती है ? जिस बच्ची को कोख में अजन्मे ही मार डालने में हम थोड़ी भी हिचकिचाहट महसूस नहीं करते हैं क्या वो बच्ची देवी का स्वरुप नहीं होती ?  हम में से ऐसे कई लोग होंगे जो कोख में बच्चियों को मार देते हैं और फिर वही लोग दुर्गा - पूजा में शक्ति की उपासना भी करते हैं । कंजक खिलाकर पूजा का असली फल प्राप्त करने के लिए बच्चियाँ चाहिए तो जरूर बशर्ते वो दूसरे की हों ! देवी का रूप अपने घर में अपने , बहू  या बेटी की कोख से नहीं चाहिए ।

हर साल भ्रूण - हत्या की बढ़ती वारदातें और स्त्री - पुरुष का बिगड़ता लिंगानुपात क्या किसी भयावह स्तिथि की ओर संकेत नहीं कर रहा है ? हम तो कोख में देवी की ही बलि दे देते हैं और हमें डर भी नहीं लगता !
भयावहता एक दूसरा स्वरूप भी है । जब इन छोटी - मासूम बच्चियों का बलात्कार किया जाता है क्या तब वो देवी का स्वरुप नहीं होती हैं ? विकृत मानसिकता के धनी इन बलात्कारियों के लिए ७ दिन की बच्ची के लिए भी वहशीपना भर हुआ है ।  


कृत्य और सोच में यह विरोधाभास सोचनीय है । हमें आत्म - मंथन की जरुरत है । अगर वाकई हमें अपने जीवन में दुर्गा सप्तशती के मन्त्रों की सकारात्मक ऊर्जा भरनी है तो हमें अपने विचारों में बदलाव लाना होगा ।  पूरे ३६५ दिन हमें बच्चियों को आदर और सम्मान देना होगा । उनसे पैदा होने का हक़ हम नहीं छीन सकते ।

जब हम दिल से बच्चियों को अपनाएंगे और जन्म लेने का , खुल कर जीने का सामान अधिकार देंगे , उसी दिन हम वाकई सही मायनों में शक्ति के उपासक होंगे । वरना कितने भी व्रत - उपवास कर लें , हवन कुंड में कितनी भी आहुतियाँ दे दें , भगवती कभी प्रसन्न नहीं होने वाली हैं ।










Thursday 29 September 2016

फेमिनिस्ट मादा मच्छर

मच्छर भगाने के उपाय के लिए चित्र परिणाम

सदियों से पुरुषों को लगता है कि पत्नियाँ  उनका खून पीती हैं और बेचारा पुरुष समाज लाचार बेबस है!
नारी के लिए इस अशोभनीय और अमर्यादित भाषा पर मैंने अक्सर शर्माजी को यहाँ - वहाँ भिड़ते देखा है । छायावाद में भी इसका अर्थ ,शाब्दिक अर्थ की भयावहता से कम खतरनाक नहीं है ।
जबसे दिल्ली में मलेरिया , डेंगू और चिकन गुनिया का प्रकोप बढ़ा है तब से शर्माजी इस सत्यता के स्थापन में जुड़ गए हैं ।
’’इंसानों में क्या मच्छरों में भी मादाएँ ही खून पीती नज़र  आ रही हैं । बेचारे पुरुष मच्छर पुष्प अर्क  का पान करते हैं और महिला मच्छर स्वभावानुसार रक्त पान करती हैं’’
दांत निपोरते शर्माजी ने तो तुलनात्मक अध्ययन पर नया अध्याय ही लिख दिया ।
‘’चाहे जो जुगत बिठा लो स्त्री -हठ शास्त्र -प्रसिद्ध है  । फिर भला महिला मच्छर क्यों पीछे हो !विज्ञापन में लम्बी जीभ निकाल कर लपक लपक कर मच्छर खाती मशीन भी इनकी ढिठाई के आगे दम तोड़ रही है ‘’

शर्मा -उवाच और मच्छर पुराण यही बंद नहीं हुआ ।  भावावेश में बेचारे पेट की बात भी कह गए ।
‘’आदि काल से स्त्री झगड़े की वजह रही है । अब देख लीजिये ये मादा मच्छर भी दो पूर्ण बहुमत से चुनी हुयी सरकारों के बीच  की खाई को और बढ़ा  रही है । मच्छर ने जो रायता फैलाया उसकी जिम्मेदारी कोई नहीं ले रहा मगर तू -तू ,मैं -मैं  खूब मची है ।

शर्माजी बात बात में पते की बात कह गए । वास्तव में मादा मच्छर ने क्या कोहराम मचा  रखा है । इतना डराया कि साहब लोग तक भाग खड़े हुए । झगड़ा और डर दोनों की वजहें यही तो हैं ।
बेचारे नासमझ और समझदार सब  इन मादाओं के मोहपाश में हैं । क्या द्वापर का हस्तिनापुर और क्या कलियुग की दिल्ली ! रक्त -चूषक मादाएं आदमी तो आदमी प्रशासन तक का खून  चूसती आयी हैं ।

शर्माजी का तो पता नहीं मगर दिल्ली मादा -मच्छर और मत्सर के मृग-मरीचिका में जरूर फंस गयी है । जिन्हें मरना नहीं चाहिए अब तो वो भी श्रीमती मच्छर के दंस से मरणासन्न हो रहे । दिल वालों की दिल्ली आज  मच्छरों की होकर रह गयी है ।

स्वाति 


Sunday 21 February 2016

ब्राम्हणवाद

जब सब जे.इन.यु और रोहिल विमला काण्ड पर अपने बच्चों का  डर t.v. और F.B पर बता रहे तो मैंने सोचा मैं भी अपनी माँ का डर बता दूँ । कल देर रात मेरी माँ से बात हो रही  थी । बातो बातों में उन्होंने पूछा बेटा  तुम ज्यादा पढ़ती रहती हो तो बताओ क्या सचमुच जो कोहराम मचा रखा है कि ''ब्राम्हणवाद '' ख़त्म करो तो ये लोग इतने हाथ धो के पीछे क्यों पड़ गए हैं ? कितने ब्राम्हण बचे हीं हुए हैं जो खौफ भर रहे सब । और फिर बताया की मेरे परनाना  होम्योपैथ के डॉक्टर थे उन्होंने गाँव में सबके शिक्षा के लिए कितना कष्ट उठाया था । चमार , डोम सब आते थे पढ़ने को । हमने तो क्या दूर दूर तक रिश्तेदारी में भी ये ''ब्राम्हणवाद '' क्या होता है , ये ना दिखाई दिया है न समझ आया है । 
मैं माँ को क्या समझाती । सिर्फ पूछा कौन सा न्यज़ चैनल देखती हो । और कहा  जो भी देखो डीडी न्यूज़ और ज़ी न्यूज़ जरूर देखा करो ।  राजनीति के अलावा बहुत सी पॉजिटिव बातें दिखेंगी और इन सब विषयों पर दूसरा दृष्टिकोण भी दिखेगा । 
बहुत खोजने पर भी accurate डेटा नहीं मिला कि  वाकई में अभी संख्या में ब्राम्हणों की स्थिति क्या है जो '' खौफ '' है ''ब्राम्हणवाद 'को लेकर । मगर जो भी डेटा मिला उससे औसतन ५% जनसँख्या निकल कर आई जो हर सेन्सस में घटती जा रही । 
मैं इंकार नहीं करती कि हरिजनों का पूजा पाठ में रोक , मंदिर में परवेज वर्जित इत्यादि पूरी तरह मनगढंत है । मैं उस परिवार से हूँ जहां लहसुन प्याज आज भी घर में नहीं जाता मगर समय के साथ परिवर्तन को सबने सहर्ष स्वीकारा है । मैंने ये मेरे रिश्तेदार में किसी ने ये जाना है की ''ब्राम्हणवाद '' किस बला का नाम है ? हम मुसलमानों के साथ भी एक थाली में खाने में गुरेज़ नहीं करते । फिर ये कौन से ब्राम्हणो के ''ब्राम्हणवाद '' की बातें करते हैं आप ? और ये खान हैं मुख्य प्रश्न कितने  है ?और क्या मुट्ठी भर ब्राम्हणों के स्वार्थ और पोंगे सोच का लबादा सब पर डाल उन्हें चपटे में तो लेंगे हीं इस शब्द की आड़े में देश बर्बाद करेंगे ?
अरे ये ''ब्राम्हणवाद '' कौन सी परम्परा है जिसे संख्या में इतना कम होते हुए भी आज़ादी के इतने वर्ष बाद भी सब डरे सहमे हैं ? और ये दर की सचाई क्या है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि डर  का पलड़ा दूसरे खेमे में कब का जा चूका है और आप अभी भी वही राग अलाप रहे ? कश्मीरी पंडित सबसे बढ़िया उदाहरण है । वक़्त मिले तो इन सबको पढ़िए और समझिए । शायद एक परम्परा आप हीं ख़त्म कर दें । 
स्वाति वल्लभा राज 

Monday 8 February 2016

शमी को श्रद्धांजलि

samajwadi party celebration child death name के लिए चित्र परिणाम

समाजवादी पार्टी के ब्लॉक जीत पर जिस मासूम की जान गयी , मुझे अभी तक समाज सेवक  राहुल गांधी और केजरीवाल की प्रतिक्रिया नहीं दिखी । कारण शायद ये कि  मुसलमान की जीत में मुस्लिम बच्चे की मौत ! यही समीकरण अगर ''सुवर्ण-दलित '' या हिन्दू मुस्लिम का होता तो  साहबज़ादे की पदयात्रा और भूख हड़ताल शुरू हो चूका होता । कई समझदार लोग भी जागृत हो गए होते अगर भाजपा शाषित प्रदेश होता तो । बंगलौर में तंजानिया के छात्रा के साथ जो हुआ , उसमें ना तो मिडिया को ना पार्टी उपाध्यक्ष और भावी प्रधानमन्त्री की दिव्य छवि लिए राहुल जी को ''असहिष्णुता '' दिखाई दी । 
 जीत का जश्न हर पार्टी ऐसे हीं  मनाते हैं और ये कोई पहली घटना नहीं जिसमें ऐसे वजह से किसी की मौत हुयी । मुझे याद है सीवान में भी ऐसा हुआ था । और ऐसा नहीं की सपा के माथे ठीकरा फोड़ा जा रहा । आंकड़े तो नहीं मिले मगर कोई दो राय नहीं की अन्य पार्टियों के जश्न में भी जानें गयी होंगी । 
इस पोस्ट का मकसद किसी पार्टी को क्लीन चिट देना कत्तई नहीं है ।  बस हम जैसे अंधी जनता को समझाने के लिए है । जिस किसी को नाक भौं सिकोड़ना हो , जरूर सिकोड़ें । मगर थोड़ा समझने की कोशिश करें ।उस माँ पर क्या बीत रही होगी ? हमारा खून तब ही क्यों खौलता है जब ''राजनैतिक फायदों वाले समीकरण '' हो? और अधिकाँश  मिडिया को भी कर्तव्य बोध का एहसास तब हीं क्यों होता है जब टी आर पी वाली न्यूज़ हो ?
कोई कल्कि अवतार  ये सब नहीं बदल सकता । सिर्फ हम और आप बदल सकते हैं । अपनी सोच का दायरा बढाकर । 
अखिलेश यादव के त्वरित कार्यवाही पर वो बधाई के पात्र हैं । मगर ऐसे लोगों की राजनीति में एंट्री बंद हो और ऐसे जश्नों पर रोक हो तब बात बने । 
स्वाति वल्लभा राज 

Sunday 31 January 2016

घर बसाने की​ ​बात करती हूँ

rape के लिए चित्र परिणाम




​यक़ीनन हर रोज
अंदर कुछ मरता है मेरे, 
जब भी तुझे 
जगाने की बात करती हूँ । 
दोज़ख में दफन होती  हैं 
हर नाकामयाब कोशिश , 
जब भी जिस्म पर गड़े निशान
हटाने की बात करती हूँ । 
डायन भी सात घर छोड़ 
बच्चे उठाती, सुना है मैंने,
सहम जाती  कोख मेरी जब भी
घर बसाने की
​ ​
बात  करती हूँ । 


स्वाति वल्लभा राज 

Saturday 30 January 2016

तब क्या होता ?

देखा मैंने आज 
कचड़े के ढेर में 
पड़ा  तिरंगा । 
अंतर्मन भींग गया 
एक पल में लाखों विचार 
चीड़ फाड़ गए । 
हाथ गया कचड़े के डिब्बे में 
और पनीली आँखों से 
पोंछा तिरंगे का कचड़ा ,
अफरातफरी हर ओर 
कार्यालय की मैडम ने 
हाथ जो डाला था कूड़े में ,
''आपने क्यों निकला 
हाथ गंदे हो गए ''
मन फिर भर गया 
बोल कुछ नहीं पायी 
सिर्फ तिरंगा दिखा दिया ,
किसी ने कहा मैडम 
जाता तो कूड़े में हीं है 
मैं ठगी रह गयी ,
मगर जोर दे कहा 
जाता होगा ,अपने आँख के सामने नहीं जाने दूंगी । 
सब ख़ामोशी के साथ 
तितर बितर हो गए । 
मैं बस सोचती रह गयी
चार  दिन पहले का
तिरंगे पर का भाषण 
और अगर इसी कूड़े में 
पड़ा होता इबादत के बाद 
मूर्ति या   कुरान ,गुरुग्रंथ के कुछ पन्ने 
तब क्या होता ?

स्वाति वल्लभा राज 

Wednesday 20 January 2016

भारत में धर्म निरपेक्षता

मालदा में उत्पन्न स्तिथि पर केंद्र सरकार ने जो दो सदस्यीय दल भेजा था उसे लोगों से नहीं मिलने नहीं दिया गया । भाजपा के कुछ नेता मिलने गए तो जेल भेजे गए । बाकि किसी दल का कोई प्रतिनिधि नहीं गया । 
कारण - आप बताये 
दादरी में जो घटना हुयी वह केजरीवाल से लेकर राहुल गांधी तक पहुंचे और वह संसदीय छेत्र जिसके अंतर्गत आता है जब उंहोने दौरा किया तो वह राजनीति थी । संसदीय क्षेत्र भाजपा के अंतर्गत है । 
कारण -आप बताये 
हैदराबाद में जो हुआ उसके मुख्य बिंदु :
राहुल गांधी भ्रमण कर चुके हैं । केजरीवाल जी कतार में हैं ।
मृत छात्र के पत्र के जिस अंश पर राजनीति हो रही जिसमें लिखा गया है- ''सामाज में आपकी स्तिथि हीं सब कुछ है । '' इसके कई अर्थ निकाले जा सकते हैं मगर जो समझदानी में समझ से लबालब भरे हैं उनका मानना है दलित की स्तिथि से है । ध्यान देने योग्य बात है सदियों से चली आ रही दलितों की दयनीय स्तिथि अचानक ''असहिष्णुता '' के वजह से इतनी बिगड़ गयी की अवार्ड वापसी हो रही है ।
और ध्यान दे हाई कोर्ट का विचार भी इस मामले में क्या था ।
भारत में धर्म निरपेक्षता का मतलब '' अल्पसंख्यकों और दलितों के हर मामले को तूल देना और मजहबी रंग देना । बहुसंख्यक छैटा के छैटा काट दिए जाए , हटा दिए जाए , मार दिए जाए तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता । ''
इन घटनाओ से जो सबक लेनी चाहिए वो कोई नहीं ले रहा । ना सत्ता धरी ना विपक्ष । colleges को गन्दी राजनीति से दूर रखना और कॉलेज में गन्दी राजनीति ना होने देना ये विश्वविद्यालय की जिम्मेदारी है । कोई कॉलेज या university अछूती नहीं है ।
सोच का दायरा बढ़ने की जरुरत है । विषय को समझने की जरुरत है । जो दूर दूर तक नहीं दिखाई देती ।
स्वाति वल्लभा राज