सदा अपने अस्तित्व के खून में सनी 
मैं लाल रंग,
व्योम का विस्तार पर,सिमटी सकुचायी 
मैं नीला रंग,
सरसों के खेत सी पसरी,पर लाही संग 
मैं पीला रंग,
बाहर से हरियाली,अंदर ठूँठ 
भयी मैं हरा रंग,
गुलाबों सी महक व काया,कंटक सा चुभता मन 
मैं गुलाबी रंग,
दुनिया  रंग-बिरंगी करती,खुद बदरंग 
मैं नारी-रंग । 
स्वाति वल्लभा राज 
