Friday 18 November 2011

जी करता है



तुम्हारे कंधे पे सर रख कर सब कुछ भुलाने को जी करता है|
तेरी  अनकही बातों  पे  फिर से  मुस्कुराने को  जी  करता है|

तुम   ढूंढों  मुझे  फिर    बेताबी  से  फिर ,
तो  भीड़   में  गुम जाने  को   जी करता है|
सम्हालो मेरे लड़खड़ाते कदम एक बार फिर,
तो आज होश खो जाने को जी करता है|

तुम पुकारो मेरा नाम दिल से तो
तेरी बाहों में ही छुप जाने को जी चाहता है|
क्या कहूँ अब और ऐ वफ़ा,
आज फिर से जी जाने को जी चाहता है|


 स्वाति वल्लभा राज












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1 comment:

  1. तुम पुकारो मेरा नाम दिल से तो
    तेरी बाहों में ही छुप जाने को जी चाहता है|
    क्या कहूँ अब और ऐ वफ़ा,
    आज फिर से जी जाने को जी चाहता है|
    sundar prem purn rachana....

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