Sunday 20 November 2011

ओस है ये जिंदगी

ओस की बूंदों की तरह ये जिंदगी,
रात की कोशिशों में बनती और
सूरज की पहली किरण में बिखर जाती|



अगले पल से फिर वही नाकाम कोशिश,
खुद को बनाने की|
बनने के बाद कुछ वक़्त ठहराने की|
ठहराव के बाद कुछ पल जीने की
पर जीने से पहले ही एक डर गुम जाने का|
फिर डर  के सच्चाई का सामना|

ओस की तरह दूब पे बिखर कर
चमकना चाहे ये ज़िन्दगी|
पल भर को ही निडर हो,
जी जाना चाहे ये जिंदगी|

swati vallabha raj












1 comment:

  1. पल भर को ही निडर हो,
    जी जाना चाहे ये जिंदगी|
    sundar bhav liye acchi rachana...

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