Tuesday 20 March 2012

तृतीय प्रकृति


 
अर्धनारीश्वर रूप कभी,
पूजित हुआ संसार में|
१४ वर्ष अवध सीमा पे
खड़े,राम इंतज़ार में|

 

पैदाइश पे रोष कलह
उपेक्षित मैं निंदनीय,कृति|
साँसों की जंजीर क्यों?
अवांछनीय मैं तृतीय प्रकृति|

 

मारना हीं जुर्म क्यों?
पैदा करना क्यों नहीं|
पैदाइश दुत्कार,अफ़सोस
तो क्या ये गुनाह नहीं|

 स्वाति वल्लभा राज

7 comments:

  1. पढ़ कर विचलित हूँ...निःशब्द हूँ..

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  2. अति सुन्दर सृजन..

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  3. सोच की दिशाएं कहती हैं - जाने कितने जवाब अभी कैद हैं प्रश्नों की आस में

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  4. बेहद उम्दा विश्लेषण किया है………सार्थक

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  5. गहन विचार अभिव्यक्ति...

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  6. बहुत उदद्वेलित करती है आपकी यह कविता।

    सादर

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