Thursday 22 March 2012

डर



मन उद्विग्न,तिस पर कुत्तें भी हैं रो रहे| 
कौन सा सुकून दूँ,ऐ मन तुझे जो खो रहे|

सोचा उठ रही हूँ ऊपर अपने हरेक दर्द से|
कैसे उमड़ी अश्रु नदियाँ;बंदिनी,वशित फिर मर्म से|

 

कतरा आँसू का हर,अमिट छाप मन पर छोड़ता|
चेहरा तो धो लूँ मगर ये दाग दिल पर कुरेदता|
 
जाने क्या विपदा झेले अब ये मन और ये आत्मा|
डर के साये में सिसकती,पलती,जियेगी मनोकामना|

swati vallabha raj



11 comments:

  1. ्सुन्दर भावाव्यक्ति।

    ReplyDelete
  2. आपको नव संवत्सर 2069 की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।

    ----------------------------
    कल 23/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. itna dard, itna vishad kyun hain? halanki mujhe thodi kam samjh aati han itni gehri kavitayen, fir bhi...
    sundar abhivyakti!

    ReplyDelete
  4. ये डर के साये जिनमें मनोकामना पलटी है ॥ सुंदर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  5. बेहद गहन अभिव्यक्ति....
    क्या कहूँ!!!!!

    ReplyDelete
  6. गहन विचार अभिव्यक्ति
    सुन्दर भाव....

    ReplyDelete
  7. सुंदर!
    चित्र भी सटीक।

    ReplyDelete
  8. bahut gahan soch liye hue bhaavabhivyakti bahut pasand aai.

    ReplyDelete
  9. सुंदर अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  10. सोचा उठ रही हूँ ऊपर अपने हरेक दर्द से|
    कैसे उमड़ी अश्रु नदियाँ;बंदिनी,वशित फिर मर्म से|

    तकलीफ जब हद से गुज़र जाती है .....
    तो ऐसा ही सैलाब बनकर बाहर आती है .....दर्द की.... छूती हुई अभिव्यक्ति !!!!!

    ReplyDelete