Thursday 17 January 2013

परिवार




कई दिनों से एक घटना आँखों के सामने बार-बार आ रही है |दर-असल मेरे हॉस्टल से मार्केट जाने के रास्ते में कुत्ते के छोटे-छोटे बच्चे हमेशा खेलते दिख जा रहे हैं |कभी एक दूसरे पे सोये हुए,कभी लड़ते हुए तो कभी आते जाते लोगों के पीछे भागते |कभी-कभी वो सपरिवार दीखते थे |कुत्ता,कुतिया ,और उनके ६ बच्चे |एक हँसता खेलता परिवार |परसों जब मैं जा रही थी तो कुछ कौवे एक पिल्ले की पूंछ खीच रहे थे |वो बेचारा इधर उधर भाग रहा था |इससे पहले की मैं कुछ करती,बाकी के उसके भाई बहन कौवों को भगाने लगे |देख कर अजीब सी खुशी भी हुई और थोड़ी निराशा भी हुई |आज शाम में उसकी माँ उन्हें दूध पीला रही थी और कुत्ता,कौवों को भगा रहा था |मन को फिर अच्छा लगा और हताशा ने भी घेरा|

वहीँ  दूसरी  ओर मेरे हॉस्टल में खुद एक कुतिया ने बच्चे जने थे जब हमारे पेपर चल रहे थे |इक्जाम के बावजूद कई लड़कियां उन पर अच्छा-खासा ध्यान दे रही थी |उनके खाने पीने  का  पूरा ध्यान रखते थे | कुछ ने कपडे के कुछ  टुकड़े भी रख दिये  थे |उन पिल्लों की माँ के लिये हर शाम कोई ना कोई दूध भी ले आता था |फिर हमारी छुट्टियाँ हो गयी |जाने से पहले सब परेशां थे कि अब वो कैसे रहेंगे |मगर हॉस्टल के भैया जी ने  जिम्मेदारी ली |जब हम वापस आए तो ५ पिल्लों में से सिर्फ २ बचे थे |उनकी हालत भी अच्छी नहीं थी |भैयाजी से पूछा तो उन्होंने कहा ठंड की वजह से वो मर गए |जहां तक मैं भैया जी को जानती हूँ उन्होंने ख्याल रखा होगा उनका |मगर शायद  नियति |परसों हीं कुछ लड़कियों ने ध्यान दिया की दोनों पिल्लों और उनकी माँ को खुजली हो गयी |उनके बाल झड़ने लगे थे |वार्डन को बताए जाने पर उन्होंने एहतियात के तौर पर उन्हें हॉस्टल के बाहर कर दिया ताकि लड़कियों को बिमारी ना लग जाये |आज सुबह मैंने उनको हॉस्टल के बाहर हीं किकुडे देखा |बहुत ढूंढने पर भी मुझे सिर्फ एक हीं पिल्ला दिखा |शायद एक मर गया है |वो कुं-कुं करके रो रहे थे |मुझसे देखा नहीं गया |ब्रेड के कुछ टुकड़े डाल कर मैं चली आई मगर मन अशांत हीं रहा |शाम में वो भी नहीं दिखें |

दोनों घटनाओं ने मुझे काफी कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया था |एक का परिवार जो हमारे इतने निगरानी में था.ठंड से बचाने के सारे उपाय किये गए थे |उनकी भूख-प्यास,जरूरतें सभी ध्यान में रखी गयी गयी थी |फिर भी वो सरवाइव नहीं कर पायें| क्यों?दूसरी ओर दूसरे कुत्तों का परिवार जो पूरी सर्दी बाहर हीं रहे,पता नहीं कहाँ से खाया-पीया,रात में ठंड से कैसे बचे,फिर  भी वो बच गए|और ना सिर्फ बचे,बल्कि मजे में दीखते है|बच्चे भी काफी हृष्ट -पुष्ट हैं |क्यों?

एक परिवार ने अपना अस्तित्व खो दिया |शायद इसलिए क्योंकि परिवार का मुखिया कभी उनके साथ नहीं दिखा,माँ ने बहुत कोशिश की थी मगर इतने ख़याल के बावजूद भी वो ना बचा पाई|वो बिखर गए क्योंकि वो कभी मुझे एक-दूसरे की मदद करते नहीं दिखें|हालांकि लोगों ने हीं काफी ध्यान रखा और शायद इसलिए उन्हें एक -दूसरे के ध्यान रखने का मौका हीं नहीं मिला |वहीँ  दूसरे  परिवार ने विषम परिस्थितियों में भी एक-दूसरे का साथ दिया |परिवार का मुखिया हर समय साथ खड़ा दिखा |  तो क्या आपसी प्यार दुलार,स्नेह,की वजह से हीं वो बच गए |परिवार की एकता उन्हें बचा ले गयी और दूसरी ओर दुसरा  परिवार सही मार्ग-दर्शन,नेतृत्व  और रख-रखाव के अभाव में अपना अस्तित्व  खो बैठा ?

ये सारे  प्रश्न मन में पता नहीं कब तक उथल-पुथल मचाते रहेंगे क्योंकि आज हम भी उस  कुत्ते  के परिवार वाली जिंदगी जी रहे है जहाँ हम परिवार के मुखिया की अगुवाई स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं|सुख-सुविधाओं में पल-बढ़ तो रहे हैं  पर एक दूसरे का ख्याल नहीं रख रहे  हैं | एक-दूसरे के लिये खड़े नहीं हैं |पता नहीं कब तक इन हालात में अपना अस्तित्व बचा पाएँगे या एक दिन यूँ हीं गुम हो जायेंगे |

स्वाति वल्लभा राज 

1 comment:

  1. बिल्कुल सही कह रही हैं आप !
    आज सरकार अशक्तों को बिल्कुल उसी तरह से बाहरी सहायता दे कर उनके आत्मविश्वास का गला घोंट रही है । रोजगार के अवसर देने के बजाय...

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