Thursday 26 January 2012

जय हिंद !


है प्रजातंत्र पर भाव कहाँ
है लोकतंत्र पर नीव कहाँ
आज़ाद तो हैं हम वाकई मे
पर आज़ादी का मोल कहाँ?
फहरा रहे हैं तिरंगा आज,
वीरों को याद भी कर रहे
झांकियां मनोहर सजी हुई
मूक दर्शक बने जिसे देख रहे|
देखा लाल किले को जो
मन भावनाओं से भर उठा|
साक्षी बना था जो कभी
निज गौरव और अभिमान का
आज देख रहा है हतप्रभ
मनोरंजन, राष्ट्रीय अवकाश का|
क्या जिम्मेदारियां पूरी हो गई
क्या गणतंत्र दिवस सार्थक रहा?
गुजरी पीढ़ी, न कल की पीढ़ी
ये प्रश्न है हमारे आज का|

स्वाति वल्लभा राज



3 comments:

  1. बहुत ही सटीक भाव....इतना उम्दा लिखने के लिए !!
    गणतंत्र दिवस की शुभकामनयें
    जय हिंद...वंदे मातरम्।

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  2. हमारे स्वतंत्र समाज की गुलाम मानसिकता का विवरण है ये |
    इससे हमें सीख लेनी चाहिए और अपने मातृभूमि के प्रति अपने
    कर्तव्यों को समझते हुए उन्हें और अच्छे से निभाने की कोशिश करनी चाहिए |

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  3. बहुत अच्छा लिखा है आपने ...

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