Saturday 28 January 2012

माँ सरस्वती शारदा



मन-मस्तिष्क के घोर तम को दूर कर
मानवता की शीतल शिशिर बन जाऊं|
लोभ,माया,द्वेष,विलासिता का दमन कर
स्थिर,प्रज्ञ,अडिग शिखर बन जाऊं|

हे शुभ्रा! मुझ अज्ञानी पर वरद-हस्त रख दे|
पावन ज्ञान-गंगा की निर्मल कुछ बूंद दे दें|
मनसा,वचसा,कर्मसा शुद्ध भाव पिरू हरसू ,
ऐसे मनकों की सुन्दर लड़ी बन जाऊं|

हे ज्ञान-दायिनी ये वर दे,
नभ की देद्विप्यामन नक्षत्र बनू मैं|
समस्त भू को आभा-मंडित करूँ
यूँ दीप्तिमान ज्योति सर्वत्र बनू मैं|

swati vallabha raj

5 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया ।

    बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।


    सादर

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  2. बंसतोत्‍सव की अनंत शुभकामनाऍं

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  3. bahut hi sundar ....basant ki subhkamnaye

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  4. समस्त भू को आभा-मंडित करूँ
    यूँ दीप्तिमान ज्योति सर्वत्र बनू मैं|
    ......बिलकुल सही कहा आपने बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।
    आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!

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