Thursday 10 January 2013

राधा -कृष्ण




जब कभी भी प्रेम पर चर्चा हो रही हो तो मानस पटल पर सबसे पहले कृष्ण-राधा की युगल  छवि अंकित होती है । हमारे संस्कारों में,पूजापाठ में ,ध्यान में,प्रेरणा में, सर्वत्र उनका प्रेम विद्यमान है । जहां कहीं भी पूर्ण आस्था और विश्वास है,वहाँ राधा हैं और जहां कहीं भी उस विश्वास की लाज रखी जाये ,वहाँ श्री कृष्ण हैं|यह समझना  काफी मुश्किल है कि उनका प्रेम परकाष्ठा पर था या एक-दूसरे के प्रति समर्पित भाव की हीं परकाष्ठा उनका प्रेम |राधा-कृष्ण के सम्बन्ध पर कई विचार-धाराएं हैं|कुछ का मानना है उनका विवाह हुआ था |दोनों के सम्बन्ध दो तरह से वर्णित हैं-स्वकीय रास और परकीय रास|स्वकीय उनके शादी शुदा सम्बन्ध का वर्णन करते हैं जबकि परकीय अलौकिक परम  सम्बन्ध को|गर्ग संहिता के अनुसार राधा-कृष्ण का विवाह स्वयं ब्रम्हा जी ने संपन्न कराया था |कान्हा उस समय महज दो वर्ष सात माह के थे तब नन्द बाबा उनके साथ खेलते-खेलते भांडीर वन पहुँच गए|अचानक तेज आंधी-तूफ़ान उठ गया और हर तरफ घुप्प अँधेरा छा गया |तभी राधा रानी प्रकट हुई |नन्द बाबा  कान्हा को उनकी गोद में देकर चले गए|तब श्रीकृष्ण किशोरावस्था में गए|श्रीकृष्ण को इस रूप में राधा रानी के साथ देख कर ब्रम्हाजी प्रकट होते हैं और उन दोनों के युगल छवि की स्तुति करने लगते हैं|श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न होते हैं तब ब्रह्मा जी उन्हें याद दिलाते हैं कि ६० हज़ार वर्षों तक उन्होंने इसी युगल छवि के दर्शन  हेतु तप किये हैं |और उन दोनों का विवाह कराने की इच्छा व्यक्त करते हैं |दोनों की सहमति से स्वयं ब्रम्हा जी उन दोनों का विवाह संपन्न कराते हैं |शादी के बाद कई दिनों तक राधा कृष्ण वन में विहार करते हैं और रास रचाते हैं |फिर जब श्री कृष्ण को नन्द बाबा की याद आती है तो वे वापस बाल्यावस्था में जाते हैं |राधा रोने लगती हैं फिर आकाश वाणी द्वारा उनके अवतार का कारण याद दिलाने पर कान्हा को वापस नन्द बाबा के पास छोड़ देती हैं |

जिस प्रकार शिव की शक्ति पार्वती हैं उसी प्रकार श्री कृष्ण की शक्ति राधा हैं |राधिका को आदि शक्ति का अंश मानते हैं |श्री कृष्ण और राधा साथ मिलकर पूर्ण सत्य बनते हैं |महाभारत और भगवत पुराण में कहीं पर भी ''राधा'' नाम का जीक्र नहीं है|सिर्फ यह वर्णन मिलता है कि श्रीकृष्ण गोपियों में किसी एक के काफी नजदीक थे |निम्बार्क सम्प्रदाय और गौडीय वैष्णव पंथ के अनुसार राधा कृष्ण का सम्बन्ध पारकीय है|इसी वजह से उनके संबंधों का ज्यादा वर्णन पुरणों में नहीं मिलता |श्रीकृष्ण, मधबन में गोपियों के निः स्वार्थ प्रेम के प्रति विशेष अनुराग रखते थें| उन गोपियों में राधा रानी सर्व प्रमुख थीं |
राधा को कृष्ण की सहचारिणी,प्रेरणा और शक्ति के रूप में देखा गया है|उनका प्रेम दिव्य है जो किसी भी सम्बन्ध से ऊपर है और किसी भी दैहिक रिश्ते से परे |श्रीकृष्ण और राधा एक हीं सिक्के के दो पहलु हैं|एक-दूसरे के बिना अपूर्ण और अस्तित्व हीन|श्री कृष्ण की परालौकीक अंतहीन भक्ति को पाना असाध्य है परन्तु उस भक्ति मार्ग को सहज  मोड़कर श्रीकृष्ण को पाने की धारा है -राधा| प्रेम के विशुद्ध प्रतिरूप हैं राधा-कृष्ण |निः संदेह इनका प्रेम किसी भी सम्बन्ध से ऊपर है |प्रेम और भक्ति में समर्पण,त्याग,साथ और की जाग्रत रूप हैं राधा-कृष्ण|दो आत्माओं का मिलन हैं राधा-कृष्ण|जीवन-मरण के चक्रव्यूह और  जड़-चेतन की गति से से मुक्त हैं राधा-कृष्ण| उस आनंदमयी शक्ति.भक्ति,प्रेम,बलिदान के रूप को नमन |

स्वाति वल्लभा राज





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