Wednesday 25 September 2013

शहज़ादी रोटियाँ




खुद भी नाचे, तुझे नचाये 
गोल-गोल रोटियाँ ,
भूख है जिसके पैर दबाती 
शहज़ादी  रोटियाँ। 

सरहद की गोली में देखो 
नर्म-नर्म रोटियाँ, 
कोठे के धंधे मे हंसती 
गर्म-गर्म रोटियाँ। 


भूखे-नंगों की चंदा जैसी 
दूर हैं रोटियाँ, 
चूल्हे की ठंडक में सिंकती 
ख्वाब सी रोटियाँ।  

बेबसी की राह में 
गायब हैं रोटियाँ,
बेंच दो ईमान,धर्म तो   
हाज़िर हैं रोटियाँ । 

खाते नहीं हो तुम हीं मगर 
सिर्फ रोटियाँ,
बहरहाल तुम्हे भी तो 
खाती है रोटियाँ । 

स्वाति  वल्लभा  राज 

2 comments:

  1. नर्म, गर्म स्वाति ने पकाई हैं रोटियाँ ……वाह बहुत ही बढ़िया |

    ReplyDelete