Monday 4 August 2014

सपनों के दुर्गन्ध




मन के बगीचे में 
ठहर गया है स्वप्न पानी  सा, 
और हर पल घिरी हूँ अब 
अपने हीं सपनों के दुर्गन्ध में । 

खोदना होगा अब एक नाला 
अपने हैं मन में, 
ताकि ये ठहरा पानी निकल जाए 
और महसूस करूँ कुछ ताज़गी 
अपने हैं सपनों का तिरष्कार करके । 
स्मृतियों  के अवशेष में हीं 
ढूँढूँगी उनके निशाँ 
और बढ़ चलूंगी कुछ नयी उड़ान की ओर 
जीवन के कुरुक्षेत्र में । 

स्वाति वल्लभा  राज 

1 comment:

  1. हमेशा हिम्मत हौसला यूँ ही बनाये रखना
    स्नेहाशीष

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