Saturday 14 January 2012

उनकी शिकायत

उन्हें शिकायत थी की हमने उन्हें पल्लू से बांध लिया,
बात यूँ उतर गयी दिल में की हमने दामन जला दिया|
वो पूछते  रहे क्या पाया पिछले बरस उन्होंने था?
हम सोचते रहे की हमने तो पाया ही उस बरस था|

वो कहने लगे जिंदगी ये नहीं
कि सिमट जाये हम एक रिश्ते में ,
मुस्कुराये हम कि साँसे तो अब   
जिंदा हैं उस एक फ़रिश्ते में|

उनकी शिकायत कि हम बदल गए वक़्त के अंदाज़ पर,
हमने पाया हम बदले, या लुट गए इश्क के इल्ज़ाम पर|
वो कहने लगे नामालूम उन्हें  अभी कई राज़ हैं,
हम सोचते रहे जिंदगी मेरी तो कब की पर्दाफास है|

स्वाति वल्लभा राज 


10 comments:

  1. Replies
    1. बहुत सुन्दर रचना , बधाई.

      Delete
  2. बहुत ही बढ़िया।


    सादर

    ReplyDelete
  3. ब्लॉग पर आगमन और समर्थन प्रदान करने के लिए बहुत- बहुत आभार, यह स्नेह सम्बन्ध अनवरत रहेगा,यही अपेक्षा है.

    ReplyDelete
  4. वाह ! स्वाति जी,
    इस कविता का तो जवाब नहीं !

    ReplyDelete
  5. .

    स्वाति जी ,

    सुंदर भावों के साथ अच्छी कविता लिखी आपने …
    शुभकामनाओं सहित …

    ReplyDelete
  6. लाजवाब मुक्तक हैं सभी ... भावात्मक ...

    ReplyDelete
  7. भावपूर्ण रचना...

    ReplyDelete
  8. achchi rachna hai swati ji yese hi aage badhti rahiye.

    ReplyDelete
  9. बहूत हि बेहतरीन रचना...
    कितनी सदगी है आपके ब्लॉग पर..
    और सदगी हि सुंदरता है...

    ReplyDelete