Tuesday, 22 May 2012

अहम् ब्रम्ह अस्मि.....



आज परम पिता परमेश्वर ,उस असीम सामर्थ वाले शक्ति-पुंज के आगे मैं नत-मस्तक हूँ|इसलिए नहीं कि उसने मेरी कोई लौटरी लगा दी या कोई अलौकिक शक्ति दे दी या ब्रम्ह ज्ञान की प्राप्ति करा दी|मैं नत-मस्तक हूँ क्योंकि उसने एक बार फिर अपने अस्तित्व के मान के लिए मानवीय भावनाओं को ताख पर रखकर,ये आभास दिलाया कि “मानव तू छद्म है...मैं अपार हूँ...स्वीकारो इस सत्य को...झुकते रहो मेरे सामने मगर मैं करूँगा वही जो मैं चाहूँगा....तुम तो माध्यम मात्र हो..कर्ता तो मैं हूँ..मैं ब्रम्ह हूँ...”

आप सोच रहे होंगे कि मुझे अचानक ऐसे ख्याल क्यों आने लगे...मैं नास्तिक नहीं हूँ...और नाहीं मुझे किसी जाति विशेष से लगाव है जिसके ईश प्रचार मे मैं संलग्न होना चाहती हूँ...मैं तो बस जीवन के कटु सत्य से रु- ब-रु होकर यह सोचने पर बाध्य हो गई की हर कदम पर ऊपर वाला अपने शक्ति का परिचय क्यों कराता है...सत्कर्मों मे कराये तो सही भी है,परन्तु गलत कामों को भी फलीभूत कर क्या सन्देश देना चाहता है?

अगर संसार मे दो ताकतें हैं-बुरी और भली तो बुरी ताकत की जीत क्यों बढती जा रही है?या अगर उसकी मर्ज़ी के बगैर पत्ता  भी नहीं हिल सकता तो फिर  क्या बुरे कर्म भी उसी की देख-रेख मे है?या फिर खुद को सर्व-शक्तिमान साबित करने का ये उसका कोई तरीका है?
नहीं पता सत्य क्या है|सत्य की खोज मे क्या मैं नचिकेता बन जाऊँ या फिर सिद्धार्थ की तरह बुद्ध बन जाऊँ या फिर सवालों के भंवर मे फंस कर डूब जाऊँ?

मेरे करीबी कहते हैं की मैं सवाल बहुत पूछती हूँ और मेरे देखने का नजरिया अलग है...हो सकता है ऐसा हो..ये भी हो सकता है की मैं कई जगहों पर गलत सवाल पूंछू...मगर कही न कहीं कुछ न कुछ तो दम हैं हीं ऐसे सवालों मे...हमारा वश सिर्फ कर्म पर हीं क्यों है...फल पर क्यों नहीं...ठीक है दुष्कर्मों के फल का खाका वही देखें मगर सत्कर्मों के फल के कुछ सीमा उस मनुष्य को दें ताकि उसे भी अपने अस्तित्व पर मान हो...



उद्विग्न मन को हम सिर्फ यह कह कर शांत नहीं कर सकते कि हमें बंधन-मुक्त हो कर्म करना है...हम मानव हैं तो मानवीय गुणों से ऊपर नहीं उठ सकते...ईश्वर कि ताकत को नमन तो है परन्तु जब-जब उसके न्याय करने का समीकरण असंतुलित होगा,तब-तब वो सवालों के कटघरे मे भी है....

स्वाति वल्लभा राज

1 comment:

  1. स्वाति जी ऐसे प्रश्न उठना स्वाभाविक है और सबके मन मे आते हैं हमारे भी मगर उसके हल भी वो ही सुझाता है जिस वक्त हम आर्त होकर उसे पुकारते हैं तब अपना आभास करा देता है और पग पग पर अहसास होता है उसके होने का बस हम मनुष्य बुद्धि उसको पूरी तरह समझ नही पाते वरना उत्तर तो हमे जरूर मिलते हैं चाहे किसी भी माध्यम से मिलें।

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