Sunday 27 May 2012

वायरस



क्या वाकई हममें जीवन है या
वायरस सा गुण रखते हैं?



जीवित हैं हम, जो भावों से भरें
और भाव;स्वार्थ बिन डसते हैं|
निर्जीव पड़े स्व हित बिना
जड़ की श्रेणी में पलते हैं|


स्वार्थ,छल,मद,लालच सरीखे
पोषक तत्वों से फलते हैं|
अपनों से हीं प्रतियोगिता
उत्थान पे उनके जलते हैं|

 

अवसरवादी जो राह मिलें
उस पर अथक हम चलते हैं|
जीवन माने खुद में हम जब,
स्वार्थ सिद्धि से सधते हैं|

 
सजीव और निर्जीवों का
पुनः हो एक अवलोकन|
परखा जाये मानव को फिर
हैं मृत या उनमे है जीवन|


या फिर वायरसों सा अधिकृत
नूतन वर्ग बनाया जाये|
जिसमे मानव को नए श्रेणी
‘’अवसरवाद”में सजाया जाये|

स्वाति वल्लभा राज


4 comments:

  1. excellent thought swati...
    सजीव और निर्जीवों का
    पुनः हो एक अवलोकन|
    परखा जाये मानव को फिर
    हैं मृत या उनमे है जीवन|
    too good!!

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  2. क्या बात है ...वाह!


    सादर

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