बेगुनाह भी मैं,गुनाहगार भी मैं|
विध्वंसकारी,रचनाकार भी मैं|
सारी सृष्टि तन्मय मुझमे,
इस सृष्टि से बेज़ार भी मैं|
हर रूप में मैं,सब रूप मेरा|
साकार हूँ तो निराकार भी मैं|
ब्रह्मनाद ओमकार भी मैं,
नास्तिकों का तिरस्कार भी मैं|
रक्त-पिपासु तलवार भी मैं,
प्यास बुझती धार भी मैं|
आती मृत्यु का सत्कार भी मैं,
वैतरणी की पतवार भी मैं|
जान सको तो जान लो,
मान सको तो मान लो|
कुछ और नहीं कुछ और नहीं,
वक़्त की रफ़्तार हूँ मैं|
स्वाति वल्लभा राज
विध्वंसकारी,रचनाकार भी मैं|
सारी सृष्टि तन्मय मुझमे,
इस सृष्टि से बेज़ार भी मैं|
हर रूप में मैं,सब रूप मेरा|
साकार हूँ तो निराकार भी मैं|
ब्रह्मनाद ओमकार भी मैं,
नास्तिकों का तिरस्कार भी मैं|
रक्त-पिपासु तलवार भी मैं,
प्यास बुझती धार भी मैं|
आती मृत्यु का सत्कार भी मैं,
वैतरणी की पतवार भी मैं|
जान सको तो जान लो,
मान सको तो मान लो|
कुछ और नहीं कुछ और नहीं,
वक़्त की रफ़्तार हूँ मैं|
स्वाति वल्लभा राज
बहुत बेहतरीन...!
ReplyDeleteआपको मेरे ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है !
हर रूप में मैं,सब रूप मेरा|
ReplyDeleteसाकार हूँ तो निराकार भी मैं|
ब्रह्मनाद ओमकार भी मैं,
नास्तिकों का तिरस्कार भी मैं|
Uske har roop ko naman..... Behtreen rachna
रक्त-पिपासु तलवार भी मैं,
ReplyDeleteप्यास बुझती धार भी मैं|
आती मृत्यु का सत्कार भी मैं,
वैतरणी की पतवार भी मैं|
sundar abhivykti
स्वाती जी नमस्कार...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग 'अनीह ईषना' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 25 अगस्त को 'वक्त की रफ्तार' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव