Wednesday 28 December 2011

रोटियाँ

जलते हुए ख्वाबों के अध-जले
राख बटोरने हम चलें|
प्यार के इस इल्ज़ाम को भी
खुद को सौपने हम चलें|



तिनका-तिनका हो वजूद मेरा
जो बिखरा था  तेरे आशियाने में,
गैरों की महफ़िल में अब
दामन में समेटने हम चलें|



वो राख जिसमे अब भी मौजूद है
हमारे प्रेम की तपिश,
उस तपिश से ता-उम्र
रोटियां सेंकने हम चलें|

वो रोटी तो अध-पकी ही रहेगी अब
पर साँसों के विराम को
इसी से रोकने हम चलें|


वो रोटी जो कभी सिकीं थी नरम
याद तो बहुत आएगी|
पर तेरे नफरत की आग में जले
रोटियों को भूलने हम चलें|


स्वाति वल्लभा राज




19 comments:

  1. वो रोटी जो कभी सिकीं थी नरम
    याद तो बहुत आएगी|
    पर तेरे नफरत की आग में जले
    रोटियों को भूलने हम चलें|

    ऐसी रोटियां सिकती कम जलती ज्यादा हैं ... मार्मिक प्रस्तुति

    ReplyDelete
  2. वो रोटी तो अध-पकी ही रहेगी अब
    पर साँसों के विराम को
    इसी से रोकने हम चलें|

    वो रोटी जो कभी सिकीं थी नरम
    याद तो बहुत आएगी|
    पर तेरे नफरत की आग में जले
    रोटियों को भूलने हम चलें|

    क्या बात है शानदार रचना....मन भावुक हो गया....बेहतरीन।

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना !
    मेरी नई पोस्ट पे आपका हार्दिक स्वागत है !

    ReplyDelete
  4. बहुत खूब!


    सादर
    ----
    जो मेरा मन कहे पर आपका स्वागत है

    ReplyDelete
  5. bahut hi sundar abhivyakti .....वो रोटी तो अध-पकी ही रहेगी अब
    पर साँसों के विराम को
    इसी से रोकने हम चलें|

    ReplyDelete
  6. वो राख जिसमे अब भी मौजूद है
    हमारे प्रेम की तपिश,
    उस तपिश से ता-उम्र
    रोटियां सेंकने हम चलें|... bahut hi badhiyaa

    ReplyDelete
  7. ब्लॉग पर पधारने और समर्थन प्रदान करने का बहुत- बहुत आभार.
    बहुत सुन्दर रचना,बधाई.

    ReplyDelete
  8. प्यार के इस इल्ज़ाम को भी
    खुद को सौपने हम चलें|
    बहुत खूब कहा है. आपका ब्लॉग अच्छा लगा. MEGHnet पर पधारने के लिए आभार.

    ReplyDelete
  9. सुंदर अभिव्यक्ति बेहतरीन भाव पूर्ण रचना,.....
    नया साल सुखद एवं मंगलमय हो,....

    मेरी नई पोस्ट --"नये साल की खुशी मनाएं"--

    ReplyDelete
  10. भावमय करते शब्‍दों का संयोजन ..बेहतरीन ।

    ReplyDelete
  11. bhut achhi rachna hae soch gahan hae bhav atirek post .

    ReplyDelete
  12. बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना !

    ReplyDelete
  13. अब कैसे बीनूं अधजले टुकड़े!! कैसे सृजन करूँ एक .. ख्वाब .....

    ReplyDelete
  14. उस तपिश से ता-उम्र
    रोटियां सेंकने हम चलें
    तपिश कायम रहे ....

    ReplyDelete
  15. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  16. वो रोटी जो कभी सिकीं थी नरम
    याद तो बहुत आएगी|
    पर तेरे नफरत की आग में जले
    रोटियों को भूलने हम चलें|

    ....बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...

    ReplyDelete