Sunday 24 June 2012

हाय रे बोरवेल




बासठ तो कभी दो सौ फीट,
चालीस है तो कहीं पचासी घंटें|

प्रशासन ने तय किये
बेहतरीन काल सुशासन के|


संदीप,अमित,आरती,गीता
डूब गए बोरेवेल में|
सारिका.कार्तिक,किंजल,माही
भरे गए सक्सेस होल में|


२००६ से २०१२ तक
विकास की खूब गाथा रही|
प्रिंस और अंजू तो बचे
भागते भूत की लंगोट भली|


मत जागना अब भी  
हिंद के शासक|
गधे बेच के यूँ हीं सोते रहना|
ऐवें हीं खुले गड्ढों में औ
भविष्य को जिंदा गाड़ते रहना
स्वाति वल्लभा राज

4 comments:

  1. ये सचमुच सोचने का विषय है

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  2. समसामयिक .... शासक भी सोये रहते हैं और जनता भी भगवान भरोसे जीती रहती है ...

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  3. प्रासंगिक है ..

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  4. अति सुन्दर लिखा है.....

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