Monday 20 February 2012

गौरवाशालिनी,कनक, महाठगिनी?




गौरवाशालिनी!यह पुरष्कार,
प्रतिष्ठा या फिर  तिरस्कार?
गौ:”,अवशाऔर अलिनी”,
या केवल मैं गौरवाशालिनी?

कनक समान जो मोरी प्रवृत्ति,
पाने की क्यों फिर पुनरावृति?
मादकता जो तुझ पे छाये,
क्यों ना मुझसे दूर फिर जाये



महाठगिनी,जो मैं माया,
पकड़े क्यों फिर मोरी छाया?
तिरगुनफांस लिए जो तोहिं,
उलाहना ना दियो फिर मोहि||

स्वाति वल्लभा राज


7 comments:

  1. बहुत सुंदर ...
    “तिरगुन” फांस लिए जो तोहिं,
    उलाहना ना दियो फिर मोहि||

    ReplyDelete
  2. “गौ:”,अवशा” और अलिनी”,
    या केवल मैं गौरवाशालिनी?

    क्या analysis है! अतिउत्तम!

    ReplyDelete
  3. बेहतरीन अभिव्यक्ति ...

    ReplyDelete
  4. वाह ! बहुत ही बढ़िया।


    सादर

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर!!!

    ReplyDelete