Tuesday 29 May 2012

बदल जाते हैं

 नयी-पुरानी हल चल के लिनक्स खंगालते हुए ''अमरेन्द्र शुक्ल अमर'' जी की रचना पढ़ रही थी...टिपण्णी में अनायास हीं दो पंक्तियाँ  बन गई...उसे हीं आगे बढाकर लिखने का प्रयास किया है...
 


कभी हम कभी तुम तो कभी हालात बदल जाते हैं...
आकाँक्षाओं के तले हमारे जज्बात बदल जाते हैं....
यायावर इहाओं कि क्या बिसात अचल रहने की
ज़िन्दगी के थपेड़ों में तो माहताब बदल जाते हैं|
                    
   
ज़ख़्मी जज्बों की मरहम-पट्टी करते करते 
कई बरसों के सुनहले दिन रात  बदल जाते है...
हर मौसम में बदले,हर क्षण मोहताज़ रिश्ते;
बेबसी तो कभी उन्माद में  अंदाज़ बदल  जाते हैं...

स्वाति वल्लभा राज....

11 comments:

  1. बहुत सुंदर......
    बदले बदले से सरकार नज़र आते हैं...
    :-)

    ReplyDelete
  2. बेहतरीन प्रस्‍तुति

    कल 30/05/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    '' एक समय जो गुज़र जाने को है ''

    ReplyDelete
  3. बहुत ही बेहतरीन लिखा है आपने...
    बहुत सुन्दर रचना....
    सब कुछ बदला - बदला सा नजर आ रहा है...:-)

    ReplyDelete
  4. क्या बात है वाह!

    सादर

    ReplyDelete
  5. अंदाज बदल जाते हैं । क्या बात है, बहुत सही कहा ।

    ReplyDelete
  6. aapki urdu utni hi umda hai jitni ki hindi... sundar!!

    ReplyDelete
  7. बहुत खूब
    शायद बदलाव ही संसार का अकेला नही बदलने वाल सच है
    संगीतात्मकता लिये हुए सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर रचना ..!!!

    ReplyDelete