Thursday 23 February 2012

ये जिंदगी....




तूफान में खड़ी मैं हर बार सोचती,इस बार हवा का दबाव शायद कम है पर मैं पगली ये नहीं समझ पाती –हवा का दबाव कम नहीं मेरी ज्ञानेन्द्रियाँ हीं शिथिल पड़ती जा रही हैं....
आज न जाने क्यों जिंदगी के कई पन्ने खुद-ब-खुद खुलते चले गए|कुछ कोरे,कुछ बदरंग,कुछ के लिखावट स्पष्ट नहीं और कुछ बिलकुल सुन्दर लिखावट मे,मेरे अरमानो के चिथड़े उड़ाते हुए.....ज़िन्दगी  ने हमेशा कुछ न कुछ दिया मगर एक एहसान के रूप मे जिसके बोझ तले दबती चली गई|मैं कभी जिंदा नहीं रह पायी और मौत कितनी बार मेरा मजाक उडाकर चली गई.....

जीवन में कई उतार-चढाव की प्रत्यक्ष-दर्शिनी रही हूँ....उतार तो जीवन को गर्त मे ले जाता दिखा मगर चढाव हमेशा नयी चुनौतियों की ओर ले गया....नयी चुनौतियाँ जो कई मीलों के खाई से भी ज्यादा गहरी,तपती रेगिस्तान से ज्यादा झुलसती और पहाड़ों से ज्यादा पथरीली.....और मैं उन गहराइयों को अपने आत्मा से नापती,रेगिस्तान मे अपने अस्तित्व को गले तक झुलसाती
और अपने हीं इच्छाओं के अस्थि-पंजर के चुभन को लाघंती बढती जाती न जाने जिंदगी की ओर या उससे दूर........

स्वाति वल्लभा राज.....




3 comments:

  1. और मैं उन गहराइयों को अपने आत्मा से नापती,रेगिस्तान मे अपने अस्तित्व को गले तक झुलसाती
    और अपने हीं इच्छाओं के अस्थि-पंजर के चुभन को लाघंती बढती जाती न जाने जिंदगी की ओर या उससे दूर........

    बहुत गहन भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

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  2. उतार से चढाव की ओर अग्रसर होना ही सुख देता है

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  3. गहन विचार व्यक्त करती पोस्ट....

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