Tuesday 14 February 2012

तेरी बंदिनी




बंदिनी तेरे प्रेमपाश में,
तरंगिनी हूँ आकाश में|
अम्बुद बन बरसूं इला पर
किंकर बन पूजूँ शिला पर|


भूतेश तेरी मन्दाकिनी मैं,
अर्धनारीश्वर!अर्धागिनी मैं|
तू अर्णव, समाहित कुलंकषा मैं,
मृगांक!तेरी हिरण्य-प्रभा  मैं|


मैं शकुन्त हूँ, तू अनंत है,
जब डूबूं तू अडिग पतंग है|
अनुरागिनी तेरी अनुचारिणी मैं,
चित चोर तेरी सहचारिणी मैं|

स्वाति वल्लभा राज 















6 comments:

  1. बहुत सुन्दर...
    हर सूरत में तेरी हूँ बस...

    शुभकामनाएँ.

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  2. भूतेश तेरी मन्दाकिनी मैं,
    अर्धनारीश्वर!अर्धागिनी मैं|
    तू अर्णव, समाहित कुलंकषा मैं,
    मृगांक!तेरी हिरण्य-प्रभा मैं|....


    प्यार था , प्यार है , प्यार रहेगा ...
    प्यार भरे हर दिन की शुभकामनायें प्यार के साथ

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  3. बहुत सुन्दर,
    हर सूरत ,हर शक्ल में मै तुम्हारी ही हु...
    बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति :-)

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  4. बहुत ही सुन्दर एहसास और समर्पण का भाव है ...बेहतरीन रचना

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  5. तू अर्णव, समाहित कुलंकषा मैं!

    बहुत सुन्दर, अलंकृत रचना!

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